Short Stories in Hindi for Class 3 - आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ Short Stories in Hindi for Class 3 शेयर करने जा रहे है। इन stories आपको बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।आप इन Short Stories in Hindi for Class 3 को पूरा पढ़े। आपको यह Stories बहुत पसंद आएगी।
[Best] Stories in Hindi for Class 3 List
किस्सा एक महामूर्ख का
एक महामूर्ख था। एक बार वह अपनी बहन घर गया। बहन ने बड़ी उमंग से भाई को चूरमा के लड्डू खिलाए। भाई को लड्डू बहुत पसंद आए। उसने बहन से पूछा, “क्या नाम है इनका ?”
बहन ने कहा, “चूरमा।” भाई ने सोचा कि घर पहुँचकर चूरमा बनवाऊँगा और पेट भरकर खाऊँगा। वह मन ही मन ‘चूरमा’ की रट लगाता हुआ अपने घर की ओर लौट पड़ा। वह जानता था, रटेगा नहीं तो सब भूल जाएगा।
रास्ते में एक छोटा सा नाला पड़ा। उसे पार किए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता था। उसने पार करने की तरकीब सोची और पार भी कर लिया। लेकिन इस जद्दोजहद में वह ‘चूरमा’ शब्द भूल गया और उसके बदले ‘वाह, क्या पार किया’ जबान पर चढ़ गया।
थोड़ी देर बाद घर पहुँचकर उसने पत्नी से कहा, “सुनो, जल्दी करो। मेरे लिए ‘वाह – क्या पार किया’ बना दो मुझे तो वही खाना है। मेरी बहन ने बहुत मीठे ‘वाह, क्या पार किया’ बनाए थे।”
पत्नी सोच में पड़ गई— ‘अरे, यह ‘वाह, क्या पार किया’ किस चिड़िया का नाम है ?’ बात उसकी समझ में नहीं आई। देर होती देखकर महामूर्ख का गुस्सा बढ़ने लगा। बोला, “निठल्ली, बनाती क्यों नहीं? कद्दू की तरह बैठी क्यों हो?”
पत्नी ने कहा, “वाह, क्या पार किया- कैसे बनता है, तो नहीं जानती। आपकी बहन जानती है तो वापस उसके घर जाओ और उससे कहो कि बना दे।” यह सुनकर उसका पारा चढ़ गया।
पास ही में एक डंडा पड़ा था। उसे उठाकर वह अपनी घरवाली को दनादन पीटने लगा। बेचारी को इतना पीटा कि उसके सारे बदन पर चकत्ते उठ आए।
पास-पड़ोस के लोग दौड़कर इकट्ठे हो गए। पति को डाँटते हुए बोले, “अरे, बीवी को कोई ऐसे पीटता है! मार मारकर बेचारी का चूरमा बना डाला। ” वह बोला, “हाँ-हाँ, यही! मुझे तो चूरमा के लड्डू खाने हैं। मैं तो इसका नाम ही भूल गया था। ” सबने कहा, “महामूर्ख कहीं का!”
शिक्षा: अज्ञान से बड़ा दूसरा कोई दुश्मन नहीं होता।
सेठ जी की युक्ति
एक छोटे से कस्बे में एक सेठ रहता था। उसका एक बड़ा सा दुकान था, दिनभर दुकान के सामने सामान लेने वालों की कतार लगी रहती थी। इसलिए सेठ ने दो नौकर काम के लिए रख लिए। दोनों नौकर सुबह-सुबह ही दुकान आ जाते थे और देर रात तक दुकान में काम करते थे।
सेठ दोनों नौकरों को बराबर मजदूरी देता था और सेठानी घर जाने के समय नौकरों को उनके बच्चों के लिए खाने – पीने का सामान दे देती थी। इस तरह कई दिन बीत गए सेठ को अपने दुकान की चीजें कम होती नजर आ रही थी, लेकिन दुकान के गल्ले में पैसा इतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा था।
अब वे परेशान होने लगे उन्होंने यह बात अपनी पत्नी को बताई तो उसकी पत्नी ने भी कहा कि मुझे भी कुछ दिनों से यही महसूस हो रहा है, कि घर का सामान जल्दी-जल्दी खत्म हो रहा है। सेठ और सेठानी ने मामले की तहकीकात करने का निश्चय किया। सेठ और सेठानी एक-एक करके नौकरों के घर गए और उन्होंने उनके घरों की छानबीन की उन्हें एक नौकर के घर से दुकान के कुछ सामान दिखाई दिए।
सेठानी ने सेठ को कहा कि उस नौकर को दुकान से निकाल दे, तो फिर सेठ सोचने लगे कि उस नौकर के छोटे-छोटे बच्चे हैं, उनका पालन पोषण कैसे होगा ? फिर अगर वह दूसरी जगह काम पर जाता है तो वह वहां भी चोरी करेगा ! उसको निकालने से काम नहीं बनेगा उसको कैसे सुधारा जाए और कैसे सच्चाई की राह पर लाया जाए इसके बारे में सोचना पड़ेगा।
सेठ ने दोनों नौकरों की मजदूरी बढ़ा दी, उनके बच्चों के लिए कपड़ा जूता और पढ़ाई लिखाई का खर्च भी दिया। तब सेठानी फिर से झगड़ा करने लगी कि, अपना सारा पैसा नौकर-चाकर पर लुटा दोगे तो, हमारे बच्चे क्या करेंगे, उनका भविष्य का क्या होगा, वह तो मर जाएंगे। तो उसने कहा कि नहीं सेठानी वह दोनों मेरे दुकान पर बड़ी मेहनत कर रहे हैं, उनके घर में अगर तंगी होगी तो उनका काम में मन नहीं लगेगा और भी गलत रास्ते पर चले जाएंगे उनको सुधारना मुझे बहुत जरूरी है, उनके सुधरने से हमें भी फायदा होगा। सेठ को अपने कार्य पर पूरा विश्वास था।
धीरे – धीरे दुकान में चोरी होना बंद हो गया और दोनों नौकर जी जान से, खुशी – खुशी काम करने लगे जिससे सेठ की आमदनी में भी बढ़ोत्तरी हुई।
शिक्षा: सेठ ने केवल अपने बारे में सोचा होता तो वह नौकर शायद कभी नहीं सुधरता, लेकिन सेठ जी की इस युक्ति से सभी का जीवन सुधर गया। हर अपराधी को दंड देकर ही नहीं सुधारा जाता बल्कि क्षमा और प्रेम से भी सुधारा जा सकता है।
चूहा और मेंढक
एक चूहा और एक मेंढक दोनों अच्छे दोस्त थे। मेंढक एक तालाब में रहता था और चूहा उसी तालाब के पास, एक पेड़ की नीचे बेल में रहता था।
मेंढक चूहा दोस्त से मिलने के लिए रोज चूहे की बिल में जाता था। लेकिन, चूहा कभी भी मेंढक की घर नहीं आती थी। क्योंकि चूहा को पानी से बहुत डर लगता था। चूहा कभी भी मंदक की घर नहीं आए।
एक दिन, मेंढक ने सोचा आज कैसे भी चूहा को मेरी घर ले आऊंगी। यह सोचकर मेंढक चूहे की बिल में जाकर चूहे को कहा अपना घर आने के लिए, लेकिन चूहा ने मना कर दिया।
मेंढक को बहुत गुस्सा आया। वह एक रस्सी को लेकर चूहे की पैरों में बंधी और एक अपना पैरों में बांध के चूहे को घसीटते हुए अपना घर तालाब में लेकर आए।
चूहा रस्सी को काटने की बहुत कोशिश की थी। लेकिन, वह नाकामयाब रही। मेंढक चूहे को लेकर पानी में डुबकी लगाई चूहा पानी में डूब के मरने वाली थी।
उसी समय एक बाज खाने की खोज में तालाब के ऊपर से जा रही थी। जाते वक्त उसने चूहे को देखा, बाज चूहे को पकड़ कर एक पेड़ में लेकर आया। लेकिन, उसी रस्सी में मेंढक भी बंधी थीv
मेंढक ने रस्सी काटने की बहुत कोशिश की थी। लेकिन, वह भी चूहे की तरह नाकामयाब रहा। बाज ने दोनों को एक साथ देख कर बहुत खुश हुआ। फिर, दोनों को अपना भजन बनाया।
शिक्षा: अगर हम किसी के लिए परेशानी खड़ी करेंगे तो खुद भी परेशान होंगे।
चींटी और कबूतर
गर्मी का मौसम चल रहा था। जंगल में एक चींटी को बहुत ज्यादा प्यास लगी थी। चींटी ने पानी ढूंढते हुए एक नदी के पास पहुंचा। नदी में पानी देखकर चींटी बहुत खुश हुआ।
वह पानी पीने के लिए, एक छोटी चट्टान पर चढ गया। लेकिन, चींटी वहां से फिसल कर पानी में गिर गया। वह धीरे धीरे पानी में डूबने लगा।
उसी नदी के पास पेड़ में एक कबूतर बैठा था। कबूतर, पेड़ मैं से चींटी को पानी में डूबते हुए देखा। वह जल्दी से एक पत्ता नदी में फेंक दिया। चींटी थोड़ा ताकत लगा कर उस पत्ते पर चरके अपना जान बचा लिया।
चींटी ने कबूतर से अपना जान बचाने के लिए शुक्रिया अदा किया। फिर, वह दोनों अच्छे दोस्त बनकर जंगल में एक साथ खुशी से रहने लगा।
एक दिन, एक शिकारी शिकार करने के लिए जंगल में आया था। उसने देखा, एक खूबसूरत कबूतर पेड़ मैं बैठा है। वह कबूतर को अपना शिकार बनाने के लिए सोचा।
फिर शिकारी अपना बंदूक निकाल कर कबूतर को निशाना किया। कबूतर को शिकारी के बारे में कुछ पता नहीं था, वह आराम से पेड़ में बैठा था। लेकिन चींटी ने शिकारी को देख लिया था.
चींटी ने कबूतर की जान बचाने के लिए, शिकारी के पास गया और उसकी पैरों में जोर से काटा। शिकारी दर्द में चिल्लाया, तब उसकी बंदूक हाथ में से गिर गया।
शिकारी की चीख सुनकर कबूतर घबरा गया। वह महसूस किया उसके साथ क्या होने वाला था। फिर कबूतर वहां से उड़कर पेड़ की उचाही पर चला गया.
शिक्षा: एक अच्छा काम कभी भी बिना रुके चलता है।
पीड़ा का कारण
कुरुक्षेत्र का मैदान। भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटे हैं। मगर उनके प्राण नहीं निकल रहे हैं। अर्जुन ने तीर मारकर पाताल फोड़ डाला। पाताल के झरने का पवित्र पानी भीष्म पितामह पर छिड़का, फिर भी उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली।
आसपास पांडव खड़े हैं। भीष्म कातर दृष्टि से कृष्ण को निहार रहे हैं। श्रीकृष्ण ने कहा, “आपने पाप देखा है, दादा… इसीलिए यह यातना भोग रहे हैं। ” भीष्म तो गंगाजल से पवित्र हैं फिर भी… ?
श्रीकृष्ण ने आगे कहा, “कौरवों की भरी सभा में जब दुःशासन द्रौपदी का चीर खींच रहा था, उस वक्त आप भी वहाँ उपस्थित थे, दूसरों की तरह मूकदर्शक थे। न आप दुःशासन का हाथ पकड़ सके, न दुर्योधन को ललकार सके।’
शिक्षा: पाप देखना भी पाप में भागीदार बनने से कम नहीं है।
किसान और चिड़ियाँ
गेहूँ के खेत में चिड़ियों की एक टोली मौज कर रही थी। तभी किसान आया और फसल को देखकर बोला, “फसल तैयार है। फसल काटने के लिए मुझे अपने पड़ोसियों की मदद लेनी पड़ेगी। ”
यह कहकर वह पड़ोसियों को बुलाने चला गया। चिड़ियाँ ने अपनी माँ को पुकारा, “माँ, माँ! चलो, हम किसी और खेत में जाकर चुगें।” माँ ने इत्मीनान से कहा, “अभी चिंता की कोई बात नहीं। तुम सब मौज उड़ाओ। “
किसी पड़ोसी के साथ न आने पर किसान ने फसल को देखकर दूसरे दिन कहा, “भाड़ में जाएँ पड़ोसी, मैं जाकर अपने रिश्तेदारों को बुला लाता हूँ।” वह अपने रिश्तेदारों को बुलाने गया कि नन्ही चिड़ियाँ फिर चिल्ला उठीं, “माँ, माँ! अब तो यहाँ से उड़ चलो।
हमारी जान को खतरा है। ” माँ ने उसी इत्मीनान से जवाब दिया, “अभी काफी वक्त है। तुम आराम से दाना चुगो।” तीसरे दिन किसान अकेला ही आया और बोला, “रिश्तेदार भी भाड़ में जाएँ।
अब तो मुझे स्वयं ही कुछ इंतजाम करना होगा, और मजदूरों की तलाश में वह गाँव की ओर चल पड़ा। तब माँ ने नन्हे-मुन्ने बच्चों की ओर देखकर कहा, “चलो बच्चो, अब हम किसी और किसान के खेत में चलकर डेरा डालेंगे। ‘ “
शिक्षा: काम तभी बनता है जब आदमी अपनी ताकत पर भरोसा करता है।
घमंडी गुलाब
एक बार की बात है, बसंत का मौसम चल रहा था। एक बगीची में बहुत ही खूबसूरत खूबसूरत फूल खिले थे। उन फूलों में एक गुलाब फूल भी थी। गुलाब बहुत सुंदर था।
इसीलिए, बाकी सब फूल गुलाब की सुंदरता को सारा दिन देखती रहती थी। गुलाब को उसकी खूबसूरती पर घमंड होती थी। गुलाब कहती थी, “मैं इस बगीचे का सबसे खूबसूरत फुल हूं।”
उसकी बात सुनकर एक सूरजमुखी ने कहा, “तुम यह बात कैसे कह सकते हो? बगीचे में और भी बहुत सारा खूबसूरत फूल है। तुम उन्हीं में से एक हो, तुम अपने आप को कैसे खूबसूरत कह सकते हो।”
गुलाब गुस्से में कहा, “बगीचे का सब फूल मुझे ही खूबसूरत मानते हैं। क्योंकि, मैं ही सबसे खूबसूरत फूल हूं। और तुम इस कैक्टस को तो देखो इसकी शरीर पर तो सिर्फ कांटे ही कांटे है।”
गुलाब की बात सुनकर सूरजमुखी ने कहा, “तुम कैसे कह सकते हो, तुम्हारे शरीर पर भी बहुत सारा कांटा है।” गुलाब ने कहा, “तुम, मेरे साथ उस कैक्टस की तुलना कर रही हो?”
कुछ दिन बीत गए, गुलाब ऐसे ही कैक्टस का मजाक उड़ाता रहता था। लेकिन, कैक्टस कभी कुछ नहीं बोले। ऐसे ही चलते चलते गर्मी का मौसम आया।
कुछ दिन से बारिश नहीं हुआ था, बगीचे में पानी का संकट दिखाई दिया था। पानी की संकट में गुलाब की पंखुड़ियां धीरे धीरे गिरने लगी।
एक दिन, उसने देखा कुछ पक्षी आकर अपनी होठों की मदद से कैक्टस में से पानी पीकर खुशी से उड़ गई। गुलाब यह देखकर कैक्टस से पूछा, “क्या तुम्हें दर्द नहीं होती। पक्षियों को पानी देते हुए?”
कैक्टस ने कहां, “दर्द तो होता है। लेकिन पक्षियों कि प्यार मिट्टी है, मेरे पानी से यह देख कर मुझे खुशी मिलती है।” गुलाब ने कहा, “क्या तुम मुझे तुम्हारी शरीर से थोड़ा पानी दे सकते हो?”
कैक्टस पक्षियों की मदद से गुलाब को पानी दी। कैक्टस पानी देने से गुलाब की जान बचा था। गुलाब को अपनी गलती का एहसास हुआ और तब से वह दोनों दोस्त बनकर बगीचे में खुशी से रहने लगा।
शिक्षा: कभी भी किसी को चेहरा देखकर उनका विचार ना करें।
अकल की दुकान
एक रौनक नाम का व्यक्ति था। जैसा नाम वैसा रूप। अकल में भी उसका मुकाबला कोई नहीं कर सकता था। एक दिन उसने घर के बाहर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा- 'यहां अकल बिकती है।'
उसका घर बीच बाजार में था। हर आने-जाने वाला वहां से जरूर गुजरता था। हर कोई बोर्ड देखता, हंसना और आगे बढ़ जाता। रौनक को विश्वास था कि उसकी दुकान एक दिन जरूर चलेगी।
एक दिन एक अमीर महाजन का बेटा वहां से गुजरा। दुकान देखकर उससे रहा नहीं गया। उसने अंदर जाकर रौनक से पूछा- 'यहां कैसी अकल मिलती है और उसकी कीमत क्या है? '
उसने कहा,- 'यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम इस पर कितना पैसा खर्च कर सकते हो।'
गंपू ने जेब से एक रुपया निकालकर पूछा :- 'इस रुपए के बदले कौन-सी अकल मिलेगी और कितनी?'
रौनक ने कहा :-'भई, एक रुपए की अकल से तुम एक लाख रुपया बचा सकते हो।'
गंपू ने एक रुपया दे दिया। बदले में रौनक ने एक कागज पर लिखकर दिया- 'जहां दो आदमी लड़-झगड़ रहे हों, वहां खड़े रहना बेवकूफी है।'
गंपू घर पहुंचा और उसने अपने पिता को कागज दिखाया। कंजूस पिता ने कागज पढ़ा तो वह गुस्से से आगबबूला हो गया। गंपू को कोसते हुए वह पहुंचा अकल की दुकान। कागज की पर्ची रौनक के सामने फेंकते हुए चिल्लाया- 'वह रुपया लौटा दो, जो मेरे बेटे ने तुम्हें दिया था।'
रौनक ने कहा :- 'ठीक है, लौटा देता हूं। लेकिन शर्त यह है कि तुम्हारा बेटा मेरी सलाह पर कभी अमल नहीं करेगा।'
कंजूस महाजन के वादा करने पर रौनक ने रुपया वापस कर दिया।
उस नगर के राजा की दो रानियां थीं। एक दिन राजा अपनी रानियों के साथ जौहरी बाजार से गुजरा। दोनों रानियों को हीरों का एक हार पसंद आ गया। दोनों ने सोचा- 'महल पहुंचकर अपनी दासी को भेजकर हार मंगवा लेंगी।' संयोग से दोनों दासियां एक ही समय पर हार लेने पहुंचीं। बड़ी रानी की दासी बोली :- 'मैं बड़ी रानी की सेवा करती हूं इसलिए हार मैं लेकर जाऊंगी'
दूसरी बोली - 'पर राजा तो छोटी रानी को ज्यादा प्यार करते हैं, इसलिए हार पर मेरा हक है।'
गंपू उसी दुकान के पास खड़ा था। उसने दासियों को लड़ते हुए देखा। दोनों दासियों ने कहा- 'वे अपनी रानियों से शिकायत करेंगी।' जब बिना फैसले के वे दोनों जा रही थीं तब उन्होंने गंपू को देखा। वे बोलीं- यहां जो कुछ हुआ तुम उसके गवाह रहना।'
दासियों ने रानी से और रानियों ने राजा से शिकायत की। राजा ने दासियों की खबर ली।दासियों ने कहा :- 'गंपू से पूछ लो वह वहीं पर मौजूद था।'
राजा ने कहा - 'बुलाओ गंपू को गवाही के लिए, कल ही झगड़े का निपटारा होगा।'
इधर गंपू हैरान, पिता परेशान। आखिर दोनों पहुंचे अकल की दुकान। माफी मांगी और मदद भी।
रौनक ने कहा - 'मदद तो मैं कर दूं पर अब जो मैं अकल दूंगा, उसकी कीमत है पांच हजार रुपए।
मरता क्या न करता? कंजूस पिता के कुढ़ते हुए दिए पांच हजार। रौनक ने अकल दी कि गवाही के समय गंपू पागलपन का नाटक करें और दासियों के विरुद्ध कुछ न कहे।
अगले दिन गंपू पहुंचा दरबार में। करने लगा पागलों जैसी हरकतें। राजा ने उसे वापस भेज दिया और कहा- 'पागल की गवाही पर भरोसा नहीं कर सकते।'
गवाही के अभाव में राजा ने आदेश दिया - 'दोनों रानी अपनी दासियों को सजा दें, क्योंकि यह पता लगाना बहुत ही मुश्किल है कि झगड़ा किसने शुरू किया।'
बड़ी रानी तो बड़ी खुश हुई। छोटी को बहुत गुस्सा आया।
गंपू को पता चला कि छोटी रानी उससे नाराज हैं तो वह फिर अपनी सुरक्षा के लिए परेशान हो गया। फिर पहुंचा अकल की दुकान।
रौनक ने कहा - 'इस बार अकल की कीमत दस हजार रुपए।'
पैसे लेकर रौनक बोला - 'एक ही रास्ता है, तुम वह हार खरीद कर छोटी रानी को उपहार में दे दो।'
गंपू सकते में आ गया। ओर बोला - 'अरे ऐसा कैसे हो सकता है? उसकी कीमत तो एक लाख रुपए है।'
रौनक बोला - 'कहा था ना उस दिन जब तुम पहली बार आए थे कि एक रुपए की अकल से तुम एक लाख रुपए बचा सकते हो।'
इधर गंपू को हार खरीद कर भेंट करना पड़ा, उधर अकल की दुकान चल निकली। कंजूस महाजन सिर पीटकर रह गया।
शेर और चूहा
एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन दोपहर को शेर अपना शिकार करने के लिए गया था। जंगल में शेर एक छोटा हिरन दिखा उसे मारकर खाने के बाद एक बड़ी पेड़ के नीचे शेर राजा सो रहा था।
उसी पेड के नजदीक बिल मैं एक चूहा रहता था। चूहा बहुत शरारती था, वह बिल में से बाहर निकल कर देखा एक शेर वहां सो रहा है। आनंद करने के लिए चूहा शेर की शरीर पर उछल कूद करने लगा।
शरीर पर उछलने की कारण शेर राजा की नींद खराब हो गई थी। शेर अचानक उठ गया, उसने देखा एक चूहा उसकी शरीर पर उछल कूद कर रहा है। शेर को बहुत गुस्सा आया, उसने चूहा को अपने पंजों में लिया।
मूर्ख चूहे, तुम शेर के साथ मजाक कर रहे हो तुम्हें तो मजा दिखाती हूं। चूहा बहुत डर गई उसने शेर से कहा, “कृपया मुझे छोड़ दीजिए। मैं आपका उपकार कभी नहीं भूलूंगी, मैं आपका मदद करूंगा।
शेर हंसकर बोला, “तुम जैसे छोटा चूहा मेरा क्या मदद कर सकता है।” चूहा ने कहा, “महाराज आपकी कभी किसी संकट आएगा तो मैं आपकी बताऊंगा।”
यह बात सुनकर शेर को चूहे पर दया आई और चूहे को छोड़ दिया। कुछ दिन बाद, जब चूहा अपने बिल में सो रही थी। तब उसने एक शेर की गर्जन सुनी।
वह बिल से बाहर निकल के देखा, एक शेर शिकारी के जाल में फस गई थी। ताकतवर शेर जाल से बाहर निकालने की बहुत कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। शेर कुछ भी करके जाल से निकल नहीं पा रहा था।
तब चूहा शेर को बचाने के लिए तुरंत शेर के पास गया और अपनी दांतो से मजबूत जाल को कटकर शेर को मुक्त किया। शेर चूहे को धन्यवाद दिया, फिर दुनो जंगल में चला गया।
शिक्षा: कभी भी किसी को कम मत समझे।
ईमानदार लकड़हारा
गांव में एक लकड़हारा रहता था। वह रोज लकड़ियां काटकर शहर में बेचने जाता था। लकड़ियां बेचकर जो पैसा आता था, उन्हें पैसों से वह अपनी परिबार की पेट चलाता था।
वह रोज लकड़ियां काटने के लिए जंगल में जाता था। एक दिन, लकड़हारा एक पेड़ पे चढ़कर लकड़ियां काट रहा था। अचानक उसकी कुल्हाड़ी हाथ से फिसल कर नदी में गिर गया।
लकड़हारा अपने कुल्हाड़ी को बहुत ढूंढा, फिर भी उसे कुल्हाड़ी नहीं मिला। लकड़हारा दुखी होकर जोर जोर से रोने लगा फिर अचानक नदी में पानी की देवता प्रकट हुए।
देवता लकड़हारा से पूछा, “क्या बात है तुम क्यों रो रही हो?” लकड़हारा ने देवता को सारी बात बताई। देवता लकड़हारे को कहां, “तुम यही रुको मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी ढूंढ कर लाती हूं।”
फिर देवता पानी में डुबकी लगाई और एक सोने की कुल्हाड़ी लेकर आई। लकड़हारा सोने की कुल्हाड़ी देख कर कहा नहीं नहीं देव, यह कुल्हाड़ी तो मेरा नहीं है। यह तो सोने का है।
फिर एक बार, देवता पानी में डुबकी लगाई और एक दूसरी कुल्हाड़ी लेकर आई। लकड़हारा ने उसे भी देख कर कहा नहीं नहीं देव यह कुल्हाड़ी मेरा नहीं है। यह तो चांदी का है और मेरा तो लोहे की कुल्हाड़ी था।
फिर देवता ने तीसरी बार पानी में डुबकी लगाई और एक लोहे की कुल्हाड़ी लेकर आई। लकड़हारा कुल्हाड़ी को देख कर कहा, “यही तो है मेरी लोहे का कुल्हाड़ी।
लकड़हारा ने देवता को बहुत बहुत धन्यवाद दिया। फिर, अपनी कुल्हाड़ी लेकर घर जा रहा था। देवता ने उसे रुका और कहां, “तुम बहुत इमानदार आदमी हो।
हमें तुम्हारी इमानदारी देख कर खुशी हुई मैं तुम्हें यह तीनों कुल्हाड़ी देती हूं। तुम इसे तीनों कुल्हाड़ी को अपने साथ घर लेकर जाओ। लकड़हारा तीनों कुल्हाड़ी लेकर खुशी से अपना घर गया।
शिक्षा: ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।
सच बोलने का तरीका
एक धनी व्यापारी को हृदय रोग था। डॉक्टर ने उसके परिवारजनों को हिदायत दी थी कि व्यापारी को कोई भी सदमा नहीं पहुँचना चाहिए। एक दिन व्यापारी किसी कार्यवश दूसरे शहर गया हुआ था।
तभी उसका नौकर वहाँ आकर बोला, “मालिक! मैं यहाँ यह बताने आया हूँ कि आपका कुत्ता मर गया है।” व्यापारी ने चौंकते हुए कहा, “वह कैसे मर गया?”। “उसने घोड़े का बहुत सारा माँस खा लिया था।”
जवाब मिला। “क्या मतलब है तुम्हारा? क्या मेरा घोड़ा भी मर गया?” नौकर बोला, “मालिक आपके अस्पताल के सभी घोडे भूख के कारण मर गए?” “क्या! नौकरों ने उन्हें भोजन नहीं दिया?”
मालिक ने पूछा। “वे घोड़ों को भोजन कैसे देते, वे तो स्वयं ही भूखे थे,” नौकर ने बताया। “क्यों? क्या मेरी पत्नी ने उन्हें उनकी मजदूरी नहीं दी?” मालिक ने पूछा। “वे भोजन के बिना कैसे जिंदा रहती?” नौकर ने जवाब दिया।
“क्या तुम्हारे कहने का यह अर्थ है कि मेरी पत्नी भी मर गई?” मालिक ने विस्मय से पूछा। तब उसने बताया, “मालिक, पिछली रात घर में आग लग गई थी और उसमें सबकुछ जलकर समाप्त हो गया।” इस प्रकार नौकर ने अपने मालिक को सदमा दिए बगैर सब सच बता दिया।
ब्राह्मण का उपाय
एक ब्राह्मण था। उसके पास बहुत सारी उपजाऊ भूमि थी। लेकिन अपने आलस्य के कारण वह उसे कभी भी कुछ नहीं बोता था। एक बार एक साधु ब्राह्मण के घर आया। ब्राह्मण ने उसकी अच्छी सेवा की।
खुश होकर साधु ने ब्राह्मण को एक जादुई चिराग दिया। साधु के जाने के बाद ब्राह्मण ने जादुई चिराग को रगड़ा। उसमें से एक जिन्न प्रकट होकर बोला, “आप मेरे मालिक हैं और मैं आपका नौकर।
आप मझे कोई कार्य बताओ, वरना मैं सबको मारकर खा जाऊँगा।” ब्राह्मण ने उसे तुरंत खेतों पर काम करने का आदेश दिया। वह जल्दी ही कार्य समाप्त कर वापस आ गया। ब्राह्मण ने उसे कई अन्य कार्य करने को दिए।
परन्तु वह जल्दी ही उन्हें समाप्त कर फिर उसके सामने आ खड़ा होता। ब्राह्मण डर गया कि काम न होने की दशा में ये मुझे ही मारकर खा जाएगा।
इसलिए उसने तुरंत एक उपाय सोचा और जिन्न को कुत्ते की पूँछ सीधी करने का कार्य सौंप दिया। जिन्न ने कुत्ते की पूँछ सीधी करने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह पूँछ को सीधी नहीं कर पाया।
अन्तत: वह इस कार्य से ऊब गया और वहाँ से भाग खड़ा हुआ। जिन्न के चल जाने से ब्राह्मण ने भी चैन की साँस ली।
बुराई के बदले
सन् 1937 के जाड़ों की बात है। पटना जंक्शन पर गाड़ी आकर रुकी तो मोटा कंबल ओढ़े एक प्रौढ़ व्यक्ति तीसरे दरजे के डिब्बे में सवार हुआ। उसी डिब्बे में कुछ मनचले छात्र भी थे।
वे लगे उसका मजाक उड़ाने। पर उस व्यक्ति पर मानो उनकी फब्तियों और मजाक का कुछ भी असर नहीं हो रहा था। वह तो खोया सा खामोश बैठा था।
तभी उस डिब्बे में टिकट चेकर आया और टिकट चेक करने लगा। उन छात्रों की भी बारी आई। पर उनमें से किसीके पास भी टिकट नहीं था। बिना टिकट यात्रा करने पर चेकर उनको डाँटने लगा।
यह देखकर उस व्यक्ति से रहा नहीं गया। उसने अपनी जेब से किराया चुकाकर चेकर से उन लोगों का पिंड छुड़ाया। सभी छात्र खिसियाए से बगलें झाँकने लगे।
वे सोचने लगे, जरूर यह कोई महान् व्यक्ति है! गाड़ी स्टेशन पर रुकी और सारा प्लेटफॉर्म ‘देशरत्न राजेंद्र बाबू की जय !’ से गूँज उठा। अब जब छात्रों को असलियत का पता चला तो उनकी गरदनें शर्म से झुक गईं।
शिक्षा: महानता वटवृक्ष-सी विशाल होती है।
बारहसिंगा का भरम
एक दिन एक बारहसिंगा तालाब में पानी पी रहा था कि उसकी दृष्टि अपनी परछाईं पर पड़ी। पानी में अपनी छाया देखकर वह सोचने लगा – वाह ! मेरे सींग कितने सुंदर हैं !
काश, मेरे पैर भी इतने सुंदर होते! तभी उसके कानों में शिकारी कुत्तों की आवाज टकराई। चौंककर वह फुरती दौड़ा। अपने पैर, जिन्हें वह बदसूरत समझता था उन्हींकी सहायता से वह कूदता हुआ दूर पहुँचकर एक झाड़ी में घुस गया।
पर शिकारी कुत्ते बढ़ते ही आ रहे थे। किंतु वह उस झाड़ी से निकलकर आगे न भाग सका। उसके सुंदर सींग झाड़ी की टहनियों में बुरी तरह फँस गए थे। वह निकल भागने की जद्दोजहद में ही था कि तभी शिकारी कुत्ते करीब आ पहुँचे और उसे धर दबोचा।
शिक्षा: वह सुंदरता किस काम की जिसका कोई उपयोग नहीं हो।
पालतू बिल्ली
बहुत पहले बिल्ली दूसरे जंगली जानवरों की तरह जंगल में ही रहती थी। इसलिए वह हमेशा ताकतवर जानवरों के साथ दोस्ती करना चाहती थी। रहते-रहते उसने विश्लेषण किया कि जंगल के राजा शेर से सभी जानवर डरते हैं।
यह सोचकर वह शेर की दोस्त बन गई। एक दिन शेर और बिल्ली दोनों साथ-साथ झपकी ले रहे थे। तभी वहाँ से एक हाथी होकर गुजरा। अन्य जानवरों की तरह ही शेर ने भी चुपचाप हाथी को जाने का रास्ता दे दिया।
बिल्ली को लगा कि हाथी शेर से भी ज्यादा ताकतवर है। इसलिए वह हाथी की दोस्त बन गई। एक दिन बिल्ली और हाथी झील में नहा रहे थे तभी हाथी ने एक आवाज सुनी और शिकारी को नजदीक जानकर वहाँ से भाग गया।
अब बिल्ली ने हाथी को भी छोड़ दिया और शिकारी के साथ ही रहने लगी। वह समझती थी कि शिकारी सबसे अधिक शक्तिशाली है, क्योंकि वह हाथी का भी शिकार कर सकता है।
एक दिन उसने शिकारी के घर में एक चूहे को देखा और उसे मार दिया। यह देखकर शिकारी और उसकी पत्नी बड़े प्रसन्न हुए। उन्हें चूहे से निजात जो मिल गई थी। बस तभी से बिल्ली एक पालतू जानवर बन गई।
मूर्ख कौआ
एक कौआ था। वह अपने काले रंग को लेकर हीनभावना से ग्रस्त था। वह जानता था कि अपने काले रंग के कारण ही वह भद्दा दिखता है। उसकी इच्छा थी कि वह भी दूसरे रंग-बिरंगे पक्षियों की तरह रंगीन हो जाए।
एक दिन कौए को जमीन पर मोर के कुछ पंख पड़े हुए मिले। उसने उन्हें उठाया और अपने दोस्त बंदर के पास गया। उसने बंदर से पंख लगाने को कहा। बंदर ने पंख लगाने में कौए की सहायता की।
फिर कौआ मोरों के पास गया और बोला “क्या मैं तुम्हारे समूह में शामिल हो सकता हूँ। अब तो मैं भी तुम लोगों की तरह सुंदर एवं रंगीन हो गया हूँ।” कौए की इस हरकत पर मोरों को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने उसे वहाँ से भगा दिया।
अब कौए के पास अपने दोस्तों के पास वापस जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। वह अपने दोस्तों के पास गया और बोला, “दोस्तों, मैं वापस आ गया हूँ।” लेकिन कौए बोले, “यहाँ से चले जाओ।
हम तुम्हें अपने समूह में शामिल नहीं करेंगे, क्योंकि तुम्हें अपने ऊपर गर्व नहीं है।” इस तरह से बेचारा कौआ अकेला का अकेला ही रह गया।
घमंडी पर्वत व छोटा सा चूहा
एक जंगल में एक विशाल पर्वत था। एक दिन उस विशाल पर्वत ने जानवरों को देखा, जंगल को देखा और फिर खुद को देखा। उसे अपने आकार पर बहुत घमंड हुआ उसने कहा मैं सबसे शक्तिशाली हूं, मैं ही तुम्हारा ईश्वर हूँ। पर्वत की यह बातें सुनकर सभी जानवरों को बहुत गुस्सा आया। घोड़े ने आगे बढ़कर कहा – ओ घमंडी पर्वत अपने आप पर इतना घमंड मत कर। एक क्षण में तुम्हें दौड़ कर पार कर सकता हूं, पर घोड़ा लड़घड़ा कर गिर गया।
पर्वत दिल खोलकर हंसा, इसी तरह हाथी,ऊँट,जिराफ सभी ने कोशिश की पर वे पहाड़ का कुछ बिगाड़ नहीं पाए अब सभी जानवरों को अपना दोस्त चूहा याद आया। चूहा पर्वत के पास आया और उसने पर्वत को चुनौती दी। पर्वत ने चूहे का खूब मजाक उड़ाया। चूहे ने मुस्कुराते हुवे पर्वत में छेद बनाना प्रारंभ किया। अन्य चूहों ने भी पर्वत में छेद करना चालू कर दिया। पर्वत घबरा गया उसने सभी जानवरों से माफी मांगी। इस तरह पर्वत के घमंड को एक छोटे से चूहे ने तोड़ दिया।
शिक्षा: इसलिए कभी अपने बड़े होने का घमंड नही करना चाहिए !
पिंजरे का बंदर
पिंजरे का बंदरएक समय की बात है एक शरीफ आदमी था। उसके पास एक बंदर था,वह बंदर के जरिए अपनी आजीविका कमाता था। बंदर कई तरह के करतब लोगों को दिखाता था। लोग उस पर पैसे फेंकते थे, जिसे बंदर इकट्ठा करके अपने मालिक को दे देता था। एक दिन मालिक बंदर को चिड़ियाघर लेकर गया,बंदर ने वहां पिंजरे में एक और बंदर देखा। लोग उसे देख – देख कर खुश हो रहे थे तथा उसे खाने को फल बिस्किट इत्यादि दे रहे थे। बंदर ने सोचा कि पिंजरे में रहकर भी यह बंदर कितना भाग्यवान है, बिना किसी परिश्रम के ही इसे खाना-पीना मिल जाता है।
उस रात वह बंदर भी भाग कर चिड़ियाघर में रहने पहुंच गया, उसे मुफ्त का खाना और आराम बहुत अच्छा लगा। पर कुछ दिनों में ही बंदर का मन भर गया। उसे अपनी स्वतंत्रता की याद आने लगी, अपनीआजादी वापस चाहता था। वह फिर चिड़ियाघर से भाग कर अपने मालिक के पास पहुंच गया।
उसे मालूम हो गया की रोटी कमाना कठिन होता है, किंतुआश्रित होकर पिंजरे में कैद रहना उससे भी कठिन है।शिक्षा: अपने पौरुष से ही मनुष्य की महानता है,मुफ्त की चीजें लोगों को निक्कमी बना देती है।
एक बिल्ली स्वर्ग में
एक बिल्ली स्वर्ग मेंएक समय की बात है कि, मृत्यु के पश्चात एक बिल्ली स्वर्ग में पहुंची। ईश्वर ने उसका स्वागत किया और कहा तुम कोई एक इच्छा कर सकती हो,जो मैं पूरी करूंगा। बिल्ली ने कहा वह एक आरामदायक पलंग चाहती है, जहां कोई तंग ना करें।
ईश्वर ने उसकी प्राथना स्वीकार की, कुछ दिनों पश्चातकुछ चूहे मर गए वे भी स्वर्ग पहुंची। ईश्वर ने उन्हें भी एक वरदान मांगने को कहा। चूहोे ने पहिए वाली जूतों की मांग की जिससे वे भी स्वर्ग में तेज गति से इधर – उधर घूम सके। ईश्वर ने उनकी इच्छा पूरी की। कुछ दिनों पश्चात ईश्वर ने बिल्ली से पूछा – तुम्हें स्वर्ग में कैसा लग रहा है ? बिल्ली ने उत्तर दिया – बहुत अच्छा सबसे अच्छी लगी आप की पहियों पर भोजन व्यवस्था।
एकता का बल
एक जंगल में एक चूहा और एक कबूतर रहता था, दोनों बहुत अच्छे मित्र थे। कबूतर और चूहे की दोस्ती को देखकर किसी को भी समझ नहीं आता था कि, एकजमीन के अंदर रहता है और दूसरा पेड़ के ऊपर। फिर भी इन दोनों में इतनी गहरी दोस्ती कैसे है।
यह देख कर एक दिन एक कौवा उनके पास जाता है, और कहता है कि, आप लोग मुझे भी अपना दोस्त बना लो।मैं आप लोगों को बहुत पसंद करता हूं, और मैं आपके सहयोग के लिए हमेशा तैयार रहूंगा।
यह बात सुनकर चूहे ने कहा कि कौवा और चूहे कीदुश्मनी तो आदि – अनादि काल से चली आ रही है। भला चूहे की दोस्ती कौंवे से कैसे हो सकती है। कौवा, चूहे का जानी दुश्मन होता है, हम तुम पर कैसे विश्वास कर ले। यह बात सुनकर कौवा गिड़गिड़ाने लगा कि अगर तुम लोगों ने मुझे अपना दोस्त नहीं बनाया तो मैं, बिना कुछ खाए पीए ही अपने प्राण त्याग दूंगा।
कौवे के बहुत मनाने और बार बार विश्वास दिलाने पर कबूतर ने कहा कि चलो एक बार हम इसका विश्वास कर लेते हैं, और इसे अपना दोस्त बना लेते हैं। इस तरह कौवा, कबूतर और चूहा तीनों दोस्त बन गए। दिन यूं ही बीतते गए और उन्होंने देखा कि कौवा एक बहुत अच्छा दोस्त है, और हमेशा उनकी मदद के लिए तैयार रहता है, कौवा सच्चा था, वह अपने दोस्तों को बेइंतहा प्यार करता था, तीनों दोस्त एक साथ मजे से रहते थे तथा सुख दुख में एक – दूसरे का साथ देते थे।
कुछ समय पश्चात उस जगह पर भयानक अकाल पड़ा नदी – नाले सूखने लगे, पेड़-पौधे, घास सभी सूखने लगे,और जंगल में खाने की बहुत किल्लत हो गई।कौवे ने कहा कि दोस्तों अब यहां पर रहना उचित नहीं है, यहां पर रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे। यहां से बहुत दूर दूसरा जंगल है, जहां पर मेरा एक दोस्त है और वहां का जंगल हरा-भरा है, वहां पर खाने की खूब सारी चीजें हैं, हम लोगों को वहां पर जाना चाहिए।
वहां पर हमारी मदद के लिए मेरा दोस्त हमेशा तैयार रहता है,पहले तो कबूतर और चूहे को यह उपाय अच्छा नहीं लगा लेकिन बाद में सोच कर उन्होंने कौवे की बात मान ली और तीनों जंगल के लिए रवाना हो गए। कौवा चूहे को अपने चोंच में दबा कर उड़ने लगा और साथ में कबूतर भी उड़ने लगा।
वे लोग बड़ी सावधानी से आगे बढ़ने लगे, दूसरे जंगल में पहुंचने के बाद उन्होंने देखा कि यह जंगल तो वाकई बहुत हरा-भरा है, और यहां खाने का भंडार है। कौवा एक तालाब के किनारे उतर गया और चूहे को भी नीचे उतार दिया। कबूतर भी कौवा के पास आकर उतर गया, फिर कौवे ने अपने दोस्त को जोर – जोर से आवाज लगाई।
तालाब से निकल कर उनके पास एक बड़ा सा कछुवा आया और उसने कौवे से कहा – मेरे दोस्त तुम कितने दिन बाद आए हो, कहो तुम कैसे हो ? सब कुशल मंगल तो है ना ? तो कौवे ने सारी बात अपने दोस्त को बता दी। चारों दोस्त उस नदी के किनारे हंसी –खुशी रहने लगे। कुछ दिन बाद जब यह चारों तालाब के किनारे बैठ कर बातें कर रहे थे, तभी एक हिरण भागते – भागते उनके पास आया, हिरणहाँफ रहा था, उसकी साँसे फुली हुईथी।
कौंवे ने कहा ओ भाई हिरन कहांचले जा रहे हो तुम इतना डर क्यों रहे हो ? तब हिरन ने कहा क्या तुम कुछ जानते हो बहुत बड़ी कठिनाई आने वाली है। यहां पर कुछ दूर नदी के किनारे एक राजा ने अपना डेरा लगाया है, इस राजा के सैनिक बहुत ही क्रूर और अत्याचारी है। कल वे इधर हि शिकार के लिए आयेंगे। उनके सामने जो भी आता है, उन्हें वो नष्ट कर देते हैं।
अगर अपनी जान बचाना चाहते हो तो तुरंत यहां से भाग जाओ ! क्योंकि वे लोग कल सुबह ही शिकार के लिए निकल जायेंगे, हमारे पास समय बहुत कम है। यह बात सुनकर सभी परेशान हो गए और चारोंदोस्तों ने हिरण के साथ कही दूर चले जाने का निश्चय किया।
अब पांचों जानवर दौड़ते-दौड़ते दूसरी जगह पर जाने लगे चूंकि कछुवा बहुत बड़ा था और वह जमीन पर रेंगता है, इसलिए सभी धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। कुछ दूर जाने के बाद एक शिकारी की नजर उस कछुवे पर पड़ गई, शिकारी दौड़ते हुए उसके पास आया। हिरन भाग गई कौवा और कबूतर पेड़ पर चढ़ गयें, चूहा बिल में घुस गया।
लेकिन कछुवा कुछ ना कर पाया और उसे शिकारी ने पकड़ लिया और अपनी जाल में भरकर चलने लगा। यह देख कर सभी दोस्त बहुत परेशान हो गए और सोचने लगे कि कैसे इस संकट से छुटकारा पाया जाए और अपने दोस्त की जान बचा जाये।उन्होंने एक तरकीब निकाली।
जैसे ही नदी के किनारे शिकारी ने जाल को नीचे रखा और खुद हाथ मुंह धोने के लिए नदी के नीचे उतरा वहीं पर कुछ दूर हिरन जमीन पर लेट गई और मरने का नाटक करने लगी। इतने में कौवा आया और हिरण पर चोंच मारने लगा। यह देख कर शिकारी ने सोचा कि यह हिरन अभी-अभी मरी होगी, उसका माँस अभी ताजा होगा।
उसने उसे उठाने के नियत से उसके पास गया तभी बिल से चूहा बाहर आया और उसने कछुवे के जाल को काट दिया। कछुवा जल्दी से निकलकर तुरंत ही नदी में कूद गया और उसकी गहराइयों में गायब हो गया। चूहा बिल में घुस गया हिरन के नजदीक आते ही कौवा उड़ गया और हिरण भी तेज दौड़ लगाते हुए जंगलों में छिप गई। इस तरह सभी साथियों ने हिम्मत और बहादुरी के साथ काम करके, एकता से रहकर उन्होंने सबकी जान बचा ली। सभी साथी फिर से एक बार अपने गंतव्य के लिए निकल पड़े।
शिक्षा: अगर एकता के साथ काम किया जाए तो बड़ी से बड़ी कठिनाई भी आसानी से हल हो जाती है।
पादरी और नाविक
एक पादरी था। लोग उससे दुखी थे क्योंकि वह वक्त-बेवक्त सबको धर्म के नाम पर नसीहतें देता रहता था। वह लोगों से कहा,”यदि तुम धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानते हो तो तुम्हारी जिंदगी व्यर्थ है।”
एक दिन पादरी को नदी पार करके दूसरे गाँव जाना था। उसने एक नाव वाले से नदी पार कराने को कहा और उसकी नाव में बैठ गया। आधी दूरी पार करके नाविक ने उससे मूल्य चुकाने को कहा।
पादरी बोला, “मैं तुम्हें तुच्छ पैसों के बजाए कीमती ज्ञान दूंगा।” यह कहकर पादरी उसे ज्ञान-ध्यान के उपदेश देने लगा, नाविक उसकी बातें सुन-सुनकर ऊब गया और उसने उसे सबक सिखाने की ठानी।
वह नाव को बीच नदी में ले गया और नाव को हिलाने लगा. जिससे पादरी नदी में गिर गया और डूबने लगा। तब उसे देखकर नाविक बोला, “अरे! तुम तो एक धार्मिक व्यक्ति हो। क्या तुम्हारी धार्मिकता तुम्हें नहीं बचा पाएगी?”
पादरी सहायता के लिए चिल्लाने लगा। तब दयालु नाविक ने पादरी को बाहर निकाला और बोला, “प्रत्येक व्यक्ति अपने कार्य का ज्ञाता होता है। तुम्हें धर्म का ज्ञान है तो हमें अपने कार्य का।”
कंजूस मित्र
कंजूस मित्र श्याम सुंदर नाम का एक नवयुवक शहर में रहता था और एक कंपनी में नौकरी करता था। उसके गाँव केे मित्र जब काम के सिलसिले में शहर आते तो उसके घर जरूर आते।एक बार मनोहर लाल नाम का एक मित्र उसके घर आया।मित्र को देखकर श्याम भौहें सिकोड़ने लगा।
यह सब देखकर उसकी पत्नी ने कारण पूछा। उसने अपनी पत्नी को कहा कि यह मेरा मित्र बहुत ही कंजूस है, जब भी आता मुझसे खूब खर्चे करवाता है।किन्तु अपने जेब से एक फूटी कौड़ी कभी नहीं निकालता। यह सुनकर उसकी पत्नी ने कहा कि आप फिक्र न करें,मैं आपको एक उपाय बताती हूँ।
अब श्याम सुंदर अपने कंजूस मित्र को लेकर शहर भ्रमण के लिए निकल गया। वह मित्र उसकी कंजूसी से तंग आ चुका था। इस बार उस मित्र ने उसे सबक सिखाने का सोचा। वह अपने कंजूस मित्र को बाजार ले गया और कहा आपको जो भी खाने की इच्छा है बता सकते हैं, मैं आपके लिए ले दूंगा।
वो एक होटल में गए श्याम ने होटल मालिक से पूछा – भोजन कैसा है ? होटल के मालिक ने जवाब दिया मिठाई की तरह स्वादिष्ट है महाशय। मित्र ने कहा तो चलो मिठाई ही लेते हैं। दोनों मिठाई की दुकान पर गए, मित्र ने पूछा – मिठाइयां कैसी है ? मिठाई बेचने वाले ने जवाब दिया – मधु (शहद ) की तरह मीठी है।
श्याम ने कहा तो चलो मधु ही ले लेते हैं। श्याम कंजूस मित्र को शहद बेचने वाले के पास ले गया। उसने शहद बेचने वाले से पूछा – शहद कैसा है ? शहद बेचने वाले ने जवाब दिया – जल की तरह शुद्धहै।
तब श्याम ने मनोहर से कहा – मैं तुम्हें सबसे शुद्ध भोजन दूंगा। उसने कंजूस मित्र को भोजन के स्थान पर पानी से भरे हुए अनेक घड़े प्रदान किए। कंजूस मित्र को अपनी गलती का अहसास हो गया, वह समझ गया कि यह सब उसे सबक सिखाने के लिए किया जा रहा है।
उसने हाथ जोड़कर श्याम से माफी मांगी, श्याम ने भी उसे अपनी बाहों में भर लिया। दोनों हँसी – खुशी वापस घर आए। श्याम की पत्नी ने मनोहर के लिए स्वादिष्ट भोजन तैयार किया। भोजन उपरांत वह वापस गांव लौट आया।
इसके बाद उसने अपनी कंजूसी की आदत हमेशा के लिए छोड़ दी।
सोने की मूर्ति
एक बार एक धनी व्यक्ति अपने व्यवसाय के विस्तार के लिए एक दूसरे शहर पहुँचा। उस शहर में नए व्यवसाय की तलाश में इधर-उधर घूमते-घूमते वह शहर की उस सीमा तक पहुँच गया जहाँ शहर की सीमा समाप्त होती थी।
वहाँ थोडा और आगे जाने पर उसने प्राचीन मंदिरों के कुछ खंडहर देखे। उसने देखा कि खंडहरों के अंदर से कुछ चमक रहा है। उसने देखा कि वह चमकने वाली वस्तु शेर की सोने से बनी प्रतिमा है।
वह सोचने लगा,”मैं बहुत भाग्यशाली हूँ। इस प्रतिमा को ले जाकर अब मैं और अधिक धनी हो जाऊँगा।” फिर वह सोचने लगा, “लेकिन मैं इस प्रतिमा का क्या करूंगा? शेर का चेहरा तो मुझे रात को डराएगा।
फिर भी मुझे अपने नौकरों की मदद से इसे ले जाना चाहिए। मैं इसे एक सुरक्षित दूरी से देख लिया करूँगा।” यह सोचकर वह वहाँ से चला गया। वह वास्तव में नहीं जानता था कि दौलत का उचित सदुपयोग कैसे किया जाता है।
फँस गया हाथ
राहुल एक अच्छा लड़का था। बस उसे एक ही बुरी आदत थी। वह मीठा बहत खाता था। मिठाई एवं चॉकलेट उसे बहुत पसंद थे। उसकी माँ उसे हमेशा कहती, “राहुल, इतना अधिक मीठा मत खाया करो।
तुम्हारे दाँत खराब हो जाएँगे।” इसी कारण माँ ने सभी चॉकलेट-टॉफियों को एक जार में छिपाकर रख दिया, ताकि राहुल अधिक मीठा न खाने पाए। उस जार का मुँह सँकरा था और वह मजबूती से बंद था।
एक दिन राहुल की माँ बाजार गई हुई थी। मौका देखकर राहुल रसोई में गया और उसने उस जार को उठा लिया। बहुत प्रयास करने के बाद उसने जार का ढक्कन खोला और जार के संकरे मुँह में हाथ डाल दिया।
फिर उसने मुट्ठी में टॉफी-चॉकलेट भर लिए और हाथ बाहर निकालने लगा। लेकिन हाथ उसमें फँस गया। वह अपना हाथ बाहर निकालने की कोशिश कर ही रहा था कि उसकी माँ वापस आ गई।
उसकी हालत देखकर बोली, “राहुल, तुमने अपने हाथ में बहुत सारे टॉफी-चॉकलेट किए हुए हैं। बस एक चॉकलेट लो और बाकी को वहीं जार में वापस रखो।
तभी तुम अपने हाथ को बाहर निकाल पाओगे।” राहुल ने वैसा ही किया। इसके बाद उसने अपना हाथ सरलता से बाहर निकाल लिया। उसे अपनी गलती समझ आ गई थी।
दोषारोपण से पहले
एक दिन एक व्यक्ति समुद्र किनारे टहल रहा था। अचानक उसने देखा कि यात्रियों से भरा एक जहाज चट्टान से टकराकर डूब गया और उसमें मौजूद सभी यात्री भी डूब गए।
वह आदमी समुद्र तट से सब कुछ एक असहाय की भाँति देखता रहा। वह उन्हें बचाने में असमर्थ था। शाम के समय उसने अपने दोस्तों को जहाज के डूबने की पूरी घटना कह सुनाई। वे सभी उन मृत लोगों के लिए दुखी थे।
उनमें से एक दोस्त बोला, “भगवान ने ये बडा अन्याय किया। उसने एक जहाज के साथ अनेक निर्दोष लोगों को भी मार दिया।” यह कहते समय उसे अपने पैर में कुछ चुभन सी महसूस हुई।
उसने नीचे देखा कि लाल चींटियाँ उसके पैर पर काट रही हैं। उसके आस-पास काफी सारी अन्य चींटियाँ भी थीं। गुस्से में उसने अपने पैर को पटकना शुरू कर दिया, जिस वजह से कई सारी चीटियाँ उसके पैर के नीचे दबकर मर गई।
अचानक भगवान प्रकट हुए और बोले, “देखो, किस प्रकार तुमने एक चींटी के लिए कई निर्दोष चींटियों की हत्या कर दी है और तुम मुझे अन्याय के लिए दोष दे रहे हो।
दूसरों को दोष देने से पहले अपने दोष देखो।” यह सुनकर उस व्यक्ति को अपनी गलती का अहसास हो गया।
राजू और उसकी पेंसिल
एक गांव में राजू अपनी दादी के साथ रहता था। राजू 2 दिन से बहुत परेशान था क्योंकि वह English परीक्षा मैं बहुत खराब प्रदर्शन किया था। राजू दुखी होकर अपने कमरे में बैठा था।
उसकी दादी को सब कुछ पता था इसीलिए दादी राजू के पास आया और उसे एक पेंसिल दी। राजू दादी के तरफ देखा और कहा, “मैं परीक्षा में बहुत ही खराब प्रदर्शन किया है, मैं तो इस पेंसिल की लायक नहीं हूं।”
दादी उसे समझाया, “तुम इस पेंसिल से बहुत कुछ सीख सकते हो यह पेंसिल तुम्हारे जैसा है।
यह पेंसिल दर्द का अनुभव करता है। जैसे तुम परीक्षा मैं खराब प्रदर्शन करने के कारण दर्द का अनुभव किया है। यह पेंसिल तुम्हें और भी बेहतर छात्र बनाने में सहायता करेगी।
इस पेंसिल से लिखने की टाइम तुम्हें याद आएगी तुम पहले परीक्षा मैं खराब प्रदर्शन किए थे। परीक्षा देते वक्त तुम्हें बहुत साहस मिलेगी। अगले परीक्षा मैं तुम जरूर अच्छा प्रदर्शन करोगीv
शिक्षा: हम सभी में वह शक्ति है जो हम बनना चाहते हैं।
चींटी और टिड्डा
गर्मी का मौसम चल रहा था। एक जंगल में दो दोस्त रहता था, एक चींटी और एक टिड्डा। टिड्डा को सारा दिन आराम करना और गिटार बजाना पसंद थी।
सर्दी का मौसम आने वाला है। चींटी सारा दिन बहुत मेहनत करके खाना और पत्ते इकट्ठे कर रही थी। क्योंकि, सर्दियों में बहुत ठंड होने की कारण खाना ढूंढना मुश्किल है।
लेकिन, टिड्डा कोई मेहनत नहीं करती थी। वह सारा दिन अपना गिटार बजाकर गाना गाती थी। चींटी ने थोड़ा थोड़ा करके खाना इकट्ठा कर रही थी, सर्दियों के मौसम के लिए।
फिर, धीरे धीरे गर्मी का मौसम चला गया और सर्दी का मौसम आया। सर्दियों में सभी पेड़ पर बर्फ की चादर चढ गई थी। बहुत ज्यादा ठंड होने की कारण चींटी अपने घर से बाहर नहीं निकलती थी।
वह घर में बहुत सारा खाना इकट्ठा कर रखी थी। लेकिन, टिड्डा की हालत बहुत खराब हो गई थी। उसे कुछ दिन से खाना नहीं मिली थी। वह ठंड में काटते हुए अपने दोस्त चींटी के घर गया और चींटी से थोड़ा खाना मंगा।
चींटी ने कहा, “मैं सारा दिन गर्मी में काम किया, ताकि सर्दी के टाइम हम भूखा ना मारे। मैं तुमको बोला था थोड़ा खाना इकट्ठा कर लो सर्दी का मौसम आने वाला है, तुमने मेरी बात नहीं सुनी।”
“हां चींटी भाई! मैं पूरा गर्मी में गिटार बजाता था और सोया रहता था।” चींटी ने कहा, “जब तुम पूरे गर्मी में गिटार बजाया। तो अब सर्दी में भी गिटार बजाओ, तुम्हें मैं खाना नहीं दे सकती।
चींटी ने बहुत सारा खाना इकट्ठा कर रखी थी। उसे बिना किसी चिंता की इस सर्दी में भी पर्याप्त खाना मिलती थी और भूखा टिड्डा ने खाना इकट्ठा नहीं की थी। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ इस सर्दी में उसे भूखा रहना पड़ा।
शिक्षा: काम की समय काम करना चाहिए।
अमर प्रेम
बंबारा गाँव में रहनेवाली दो औरतों के घर एक ही दिन बच्चों का जन्म हुआ। एक के घर लड़का हुआ, दूसरे के घर लड़की लड़के का नाम रखा-येंगे और लड़की का सिराह।
दोनों बच्चे एक-दूसरे को बहुत चाहते थे। वे एक-दूसरे के लिए जान भी दे सकते थे। जब सिराह जवान हुई तो एक अमीर आदमी ने उसका हाथ माँगा।
माँ-बाप शादी के लिए तैयार हो गए, लेकिन सिराह अपने दूल्हे के साथ जाने के लिए तैयार नहीं हुई। वह येंगे को भी अपने साथ ले जाना चाहती थी। उसने दूल्हे से विनती की। दूल्हे ने विनती स्वीकार कर ली।
और फिर तीनों गाँव छोड़कर दूसरे गाँव की ओर चल दिए। दूल्हे के गाँव पहुँचने के बाद सिराह ने नई मुसीबतें खड़ी कर दीं। उसने कहा कि अगर येंगे न आया तो मैं नए घर में जाऊँगी ही नहीं।
इस बार भी उसके पति को हार माननी पड़ी। और रोज दिन-रात यही चलता रहा। जहाँ कहीं सिराह जाती, येंगे साथ में रहता: जो कुछ सिराह अपने पति के लिए करती, पहले येंगे को मिलता।
कुछ दिनों तक यही रवैया देखकर पति ने सोचा, कुछ-न कुछ तो करना होगा। इसलिए उसने गाँव के मुखिया को अपनी परेशानी बताई। “तुम भाग्यशाली हो।”
मुखिया बोला, “जल्द ही एक बहुत बड़ा युद्ध शुरू होनेवाला है – और चूँकि येंगे हट्टा-कट्टा है, इसलिए वह युद्ध में जाने से इनकार नहीं कर सकता। उसे मेरे पास भेज दो। उसे खत्म करने का इंतजाम मैं कर लूँगा।”
कुछ ही दिनों बाद चारों तरफ लड़ाई के नगाड़े बजने लगे। सभी युवा लोग मोरचे पर जाने के लिए मुखिया के आगे उपस्थित हुए। उन्हींमें था येंगे और पीछे थी उसकी प्रिय सिराह लड़ाई के वक्त भी सिराह उसे छोड़ना नहीं चाहती थी।
लेकिन उसके पति को आशा थी कि येंगे से उसका जल्दी ही पीछा छूट जाएगा और सिराह गोलाबारी से डरकर वापस उसीके पास भाग आएगी।
लड़ाई शुरू ही हुई थी कि येंगे घायल होकर गिर पड़ा। मरते ही वह एक पेड़ बन गया। सिराह जो येंगे के बिना जीने की बात भी नहीं सोच सकती थी, एक बेल बन गई और पेड़ के तने से लिपट गई। और उस दिन से पेड़ों के तने बेलों से ढके होते हैं।
शिक्षा: प्रेम अमर होता है।
चालाक चमगादड़
किसी जमाने में चखेरू और पखेरुओं के बीच युद्ध छिड़ गया। कई दिनों तक युद्ध चलता रहा। चमगादड़, जो आधा पशु और आधा पखेरू था, इस युद्ध पर अपनी दृष्टि गड़ाए रहा। अंत में उसे ऐसा लगा कि चखे युद्ध जाएँगे।
तुरंत वह चखेरुओं की फौज में भरती हो गया। पर युद्ध का नतीजा एकाएक पलट गया। आखिरी हमले में चखेरु हार गए और पखेरुओं की जीत हो गई। यह देखकर चमगादड़ ने फिर दल बदला।
वह जैसे ही पखेरुओं के दल में घुसने गया कि सारे पखेरुओं ने मिलकर उसे खदेड़ दिया। वह फिर चखेरुओं के बीच लौट आया। पर उसकी इन हरकतों से चखेरू उसपर चिढ़े बैठे थे।
उन्होंने उसे ऐसा खदेड़ा कि उसे अपनी जान के लाले पड़ गए। वह जाकर अँधेरे कोने में छिप गया। तब से आज तक चमगादड़ अपना मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहा। शायद इसीलिए वह सिर्फ रात में ही घर से बाहर आता है।
शिक्षा: स्वार्थी को सभी धिक्कारते हैं।
झूठ का फल
न्यायालय में दो मित्र उपस्थित हुए। नाम था सुंदरलाल और गुंदरलाल। सुंदरलाल जज से बोला, “साहब, तीन साल पहले जब मैं अपना घर छोड़कर विदेश गया तो गुंदरलाल को अपना परम मित्र जानकर अपनी हीरे की एक अँगूठी अमानत के रूप में दे गया था।
मैंने इससे कहा था कि वह तब तक उस हीरे की अंगूठी को सँभालकर रखे जब तक मैं न लौट आऊँ। पर अब यह कहता है कि इसे अँगूठी के विषय में कुछ नहीं पता।”
गुंदरलाल अपने दिल पर हाथ रखकर बोला, “सरकार! सुंदरलाल झूठ बोल रहा है। मैंने उसकी अंगूठी कभी नहीं ली। हाँ, जब यह यहाँ से गया था तब इसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी।”
जज ने कहा, “सुंदरलाल, क्या तुम्हारी इस बात का कोई साक्षी है ? ” उसने कहा, “हुजूर! जब मैंने गुंदरलाल को अँगूठी दी उस समय दुर्भाग्य से वहाँ कोई उपस्थित नहीं था, सिवा एक देवदार के पेड़ के, जिसके नीचे हम खड़े थे। ”
गुंदरलाल ने यह सुनकर जवाब दिया, “मैं कसम खाकर कह सकता हूँ कि न मैं अँगूठी के विषय में जानता हूँ और न इस देवदार के वृक्ष के ही विषय में।”
जज ने सुंदरलाल से कहा, “तुम खेत में वापस जाओ और उस देवदार के पेड़ से एक टहनी लेकर वापस आओ। मैं उसे देखना चाहता हूँ।”
सुंदरलाल चला गया। कुछ देर के बाद जज ने गुंदरलाल से कहा, “सुंदरलाल वापसी में इतनी देर कैसे लगा रहा। है ? तुम जरा खिड़की के पास खड़े होकर देखो तो सही कि वह देवदार की टहनी लिये रास्ते पर आता दिखाई दे रहा है या नहीं। “
गुंदरलाल ने कहा, “मालिक, अभी तो वह उस पेड़ तक भी नहीं पहुँचा होगा। वहाँ तक पहुँचने में उसे कम-से-कम एक घंटा लगेगा। ”
“जज ने जब गुंदरलाल का यह तर्क सुना तो सारा माजरा उनकी समझ में आ गया। वे बोले, “सुंदरलाल, जितना तुम पेड़ के विषय में जानते हो उतना ही अँगूठी के विषय में भी जानते हो।”
शिक्षा: सच कभी छिपता नहीं।
कद्दू और बेल
एक किसान बेल के पेड़ के नीचे खड़ा हुआ अपने पड़ोसी की फुलवारी को देख रहा था। तभी उसकी निगाह कद्दू को देख उसकी बेल पर गई। एक बड़ा सा कद्दू बेल पर लटका हुआ था।
किसान यह देखकर स्वयं से ही बोला, “बेल का यह पेड़ कितना मजबूत है ! और इसमें लगनेवाला फल कितना छोटा, हलका, गेंद सा होता है ! और कहाँ यह कद्दू की दुबली-पतली बेल और इतना वजनी कद्दू!
अगर मैंने इस संसार का निर्माण किया होता तो शर्तिया बेल को कद्दू की हलकी-फुलकी लत्तर में गूँथ देता और एक-एक टन वजनी कद्दू को इस मजबूत बेल के पेड़ में लटका देता, जो सचमुच देखने लायक होता। ”
किसान का इतना कहना भर था कि तभी बेल के पेड़ से एक बेल टूटकर उसकी नाक पर गिरा। नाक से खून बहने लगा। किसान दुःखी हो बड़बड़ाया, “मैं भी कितना गलत सलत सोचता हूँ! जो जहाँ है वहीं भला है। अगर बेल के पेड़ पर एक टन का कद्दू लगा होता तो!”
शिक्षा: ईश्वर ने सभी को सोच-विचारकर जगह दी है।
सीता
रावण की अशोक वाटिका में सीताजी भगवान् राम को याद कर छटपटा रही थीं। उनके आसपास राक्षसियाँ बैठी पहरा दे रही थीं। उनकी परवाह न करते हुए वे बस, ‘राम’ नाम का जप कर रही थीं।
त्रिजटा ने करीब जाकर पूछा, “तुम तो राम का ध्यान इतना करती हो कि एक दिन खुद ही राम बन जाओगी, जैसेकि प्राण शिव हो जाते हैं।’ ” “नहीं।”
ध्यानस्थ सीता चौंकीं, “मैं उनमें लीन होकर भी सीता बनी रहना चाहती हूँ: क्योंकि अगर मैं उनमें लीन हो मिट जाऊँ तो फिर उनकी सेवा कैसे कर पाऊँगी!”
शिक्षा: भक्त बनना भगवान् बनने से भी कठिन है।
कंस और हंस
कंस को ज्योतिषियों ने बताया था कि तुम्हारी बहन का आठवाँ पुत्र तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा। कंस ने इसीलिए अपनी बहन देवकी को कारागार में डाल दिया।
छह बालकों को उसने जनमते ही मार डाला था। इस वक्त वह सातवें का संहार करने जा रहा था। राजमहल से निकलकर वह बाग में आया। बाग में एक बेहद सुंदर फव्वारेवाला सरोवर था।
सरोवर में हंस-हंसिनी का एक जोड़ा रहता था। जैसे ही वह फव्वारे के पास पहुँचा, हंस ने हंसिनी से कहा, “अब मोती चुगने का शौक रहने दो। ”
हंसिनी हंस की बात समझी नहीं बोली, “महाराज कंस का राज्य है। मोतियों की क्या कमी ! मोती जैसे अन्न के दानों का भंडार तो भरा पड़ा है। “
हंस पुनः हँसा, ‘‘जो राजा मानवों की हत्या करता है और तिसपर भी बाल-हत्या करता है वहाँ धन-धान्य क्या रहेगा!”
कंस ने अपनी निंदा सुनी तो क्रोधित हो उठा, “मेरे ही अन्न-जल पर जीनेवाले की यह हिम्मत !” उसने तुरंत हंस की गरदन काट दी। हंसिनी चीत्कार कर उठी। इसके बाद कंस कारागार पहुँचा।
उसने सातवें बच्चे को उठाया और पत्थर पर पटकने के लिए उछाला। परंतु पत्थर पर टकराने से पूर्व ही वह बच्ची आसमान में यह कहती हुई उड़ गई कि तुम्हारी बहन की आठवीं संतान तुम्हारा काल होगा!
शिक्षा: यह मत भूलो कि ईश्वर न्यायी है।
नकलची लोमड़ी
किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी एक दिन वह जंगल में घूम रही थी। अचानक उसे एक मोटा और लम्बा साँप पेड़ों के नीचे लेटा दिखाई दिया। उसका शरीर सामान्य से बहुत लम्बा था।
वह रास्ते के एक कोने से दूसरे कोने तक फैला हुआ था। साँप के शरीर की लम्बाई देखकर लोमड़ी अत्यधिक प्रभावित हुई। उसने सोचा, ‘यह तो बहुत लम्बा साँप है। काश! मैं भी इसी की तरह लम्बी होती।
मुझे जमीन पर लेटकर अपने शरीर को खींचना चाहिए। हो न हो, इस तरह मैं अवश्य ही सांप की तरह लंबी हो जाऊँगी।’ ये सोचकर लोमड़ी ऐसी ही कोशिश करने लगी।
वह रास्ते में साँप के बराबर में ही लेटकर अपने शरीर को जबरदस्ती खींचने की कोशिश करने लगी। उसने बहुत कोशिश की, लेकिन उसका शरीर खिंचकर लंबा नहीं हुआ।
हाँ उसके पूरे शरीर में दर्द जरूर होने लगा। परन्तु वह तो किसी भी तरह खुद को साँप जैसा लम्बा कर लेना चाहती थी। अन्तत: उसने अपने शरीर को पूरी ताकत से फिर खींचा।
परिणामत: उसका पेट फट गया और उसकी घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई। बेचारी लोमड़ी नहीं जानती थी कि दूसरों के साथ अनावश्यक तुलना नहीं करनी चाहिए।
शरारती चूहा
एक शरारती चूहा था। एक दिन उसने एक बैल को पेड़ के नीचे सोते हुए देखा। बैल अत्यधिक विशालकाय था और उसके सींग भी अत्यधिक नुकीले थे। साँस लेते समय उसके चौड़े नथुने खुलते और बंद होते।
चूहा शरारती तो था ही। जब उसने बैल के बार-बार बंद होकर खुलते नथुनों को देखा तो पास जाकर नथुनों को बंद कर दिया। बैल गुस्से से उठा। वह जैसे ही उठा, चूहा वहाँ से भाग गया।
बैल ने उसे भागते हुए देख लिया और वह उसका पीछा करने लगा। वह चूहे को सजा देना चाहता था। छोटा चूहा तेजी से भागा और एक दीवार के अंदर बने एक छेद में घुस गया।
बैल खुद को नहीं रोक पाया और उसने चूहे को मारने के लिए अपना सिर दीवार पर दे मारा। फलस्वरूप वह खुद ही बुरी तरह जख्मी हो गया। उसके सिर से खून भी बहने लगा।
अब बैल समझ गया था कि दुश्मन भले ही कितना भी छोटा हो, उसे जीतने के लिए ताकत के साथ-साथ बुद्धि की भी जरूरत होती है। फिर भी कोई जरूरी नहीं कि वह काबू में आ ही जाएगा।
आखिर एक स्त्री चाहती क्या है?
आखिर एक स्त्री चाहती क्या है? विगत सवा सौ सालों में मनोविज्ञान भी इस प्रश्न का उत्तर नही दे सका—आखिर एक स्त्री चाहती क्या है ?—ओशो ने एक छोटी-सी कहानी के माध्यम से हंसाते हुए समझा दिया--
“पुराने समय की बात है। एक विद्वान को फांसी लगनी थी।
राजा ने कहाः बताओ कि आखिर औरत चाहती क्या है? जान बख्श देंगे, यदि सही उत्तर मिल जाये।
विद्वान ने कहाः हुजूर, मोहलत मिले तो पता कर के बता सकता हूँ।
एक साल की मोहलत मिल गई। बहुत घूमा, कहीं से भी संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। आखिर में किसी ने कहा कि दूर एक चुड़ैल रहती है, वही बता सकती है।
चुड़ैल ने कहा कि एक शर्त है। यदि तुम मुझसे शादी कर लो तो जवाब बताउंगी।
उसने सोच-विचार किया। जान बचाने के लिए शादी की सहमति दे दी।
शादी होने के बाद चुड़ैल ने कहाः चूंकि तुमने मेरी बात मान ली है, तो मैंने तुम्हें खुश करने के लिए फैसला किया है कि 12 घंटे मैं चुड़ैल और 12 घन्टे खूबसूरत परी बनके रहूंगी। अब तुम ये बताओ कि दिन में चुड़ैल रहूँ या रात को?
विद्वान वाकई में बुद्धिमान था। उसने सोचा यदि वह दिन में चुड़ैल हुई तो दिन नहीं कटेगा, रात में हुई तो रात नहीं कटेगी। अंततः वह बोलाः जब तुम्हारा दिल करे परी बन जाना, जब दिल करे चुड़ैल बन जाना।
यह बात सुनकर चुड़ैल ने प्रसन्न होकर कहाः चूंकि तुमने मुझे अपनी मर्ज़ी से जीने की छूट दी है, इसलिये मैं 24 घंटे, हमेशा ही परी बन के रहूंगी।
यही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है।
स्त्री अपनी मर्जी का करना चाहती है। यदि स्त्री को अपनी मर्ज़ी का करने देंगे तो वो परी बनी रहेगी वरना चुड़ैल हो जाएगी।
यही बात पुरुष पर लागू होती है। अपनी स्वतंत्रता से जियेगा तो देवता, वरना राक्षस बन जाएगा। अतः मुद्दा स्त्री या पुरुष का नहीं है। संक्षेप में सारे जीवन का सारसूत्र है--मुक्ति में आनंद, दिव्यता, सौंदर्य है, और बंधन में है दुख, संताप, कुरूपता।"
नेकी की राह
शीत ऋतु अपने चरम पर थी। चारों ओर पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ एक सुंदर सा गाँव था। वहाँ एक छोटी लड़की रहती थी। उसे अपनी सहेली के घर जाने की इच्छा हुई। वह अपने हाथ में सिर्फ एक रोटी का टुकड़ा लेकर घर से चली, उसने सड़क के किनारे एक बूढ़े को देखा। मैं भूखा हूं,उसने कहा मुझे कुछ खाने को दो ! लड़की ने उसे रोटी का टुकड़ा दे दिया। वृद्ध ने अपने दोनों हाथ उठाकर उसे आशीर्वाद दिया।
थोड़ा आगे जाने पर उसे एक छोटा बच्चा मिला, बच्चे ने लड़की से प्रार्थना कि मुझे ओढ़ने के लिए कुछ दो। लड़की ने थोड़ी देर सोचने के बाद झटपट अपना साल निकालकर उसे दे दिया। थोड़ा आगे गई एक बच्चा ठंड से कांप रहा था,लड़की को उस पर दया आ गई। उसने अपनी मफलर से बच्चे को ढक दिया। थोड़ा आगे चलने के बाद अब वह खुद सर्दी से काँपने लगी,वह एक पेड़ के नीचे दुबक कर बैठ गई।
अगले ही पल उसने तारों को आसमान से नीचे गिरते देखा। उसने जब गौर से देखा तो वे सोने के सिक्के थे,उसका शरीर सुंदर कपड़े से ढक गया, उसके पैरों में जूते थे,गले में मफलर थी। उसके सामने एक सुंदर सी टोकरी थी, जो फलों और मिठाइयों से भरी हुई थी। भगवान ने उसकी दयालुता के लिए उसे आशीर्वाद और इनाम दिया था।
शिक्षा: जरूरतमंदो की मदद करने से आप को कभी किसी बात की कमी नही होगी,, जितना अधिक दान, धर्म व दीन,दुःखी लोगो की मदद करोगे उतना ही आप को ऊपर वाला ज्यादा देगा ....
पड़ोसन का बर्तन
पड़ोसन का बर्तन एक बार एक औरत ने अपनी पड़ोसन से एक बर्तन उधार मांगा और दूसरे दिन उसने एक अन्य छोटे से बर्तन के साथ वह बर्तन वापस कर दिया। पड़ोसन को आश्चर्य हुआ उसने उससे पूछा कि, वह छोटा बर्तन कहां से आया? औरत ने जवाब दिया – तुम्हारे बड़े बर्तन ने छोटे बर्तन को जन्म दिया है। उस औरत ने सोचा कि उसकी पड़ोसन का दिमाग घूम गया है, उसने उसे कुछ नहीं कहा। क्योंकि वह एक और बर्तन पाकर बहुत खुश थी।
कुछ दिनों बाद पड़ोसन बर्तन फिर उधर मांगा। मगर इस बार उसने बर्तन अपनी पड़ोसन को वापस नहीं किया। सहेली के बर्तन वापस मांगने पर उसने कहा –बर्तन! तुम्हारा बर्तन मर गया है। पड़ोसन ने हंसकर उससे पूछा कि बर्तन कैसे मर सकता है ? इस पर उस औरत ने बड़ी चतुराई से कहा – अगर तुम्हारा बर्तन, दूसरे बर्तन को जन्म दे सकता है तो, मर भी सकता है। यह सुनकर पड़ोसन दंग रह गई। मगर अब उस पड़ोसन के पास बर्तन को खो देने के अलावा कोई दूसरा चुनाव नहीं था।
शिक्षा: अनेकों बार हम छोटे से लाभ के लिए अपने आप को मुसीबतों में डाल लेते हैं। अतः हमें तात्कालिक लाभ नहीं देखते हुए किसी विषय पर विस्तार पूर्वक सोचना चाहिए, कि क्या गलत है और क्या सही या।
दूधवाली और उसकी बलटी
एक गांव में एक दूधवाली उसकी मां के साथ रहती थी। उनका एक गाय थी, वह रोज बलटी भर के दूध देती थी। दूधवाली उसे शहर में बेचकर जो पैसा आती थी, उंही पैसा से उनकी घर चलती थी।
एक दिन उसकी मां ने कहा आज दूध बेचकर जो पैसा आएगी, तुम उस पैसे से अपने लिए कुछ खरीदना। दूधवाली अपने सर पर दूध की बलटी लेकर दूध बेचने के लिए शहर की ओर गया।
उसने जाते जाते सोचा, आज दूध बेचकर जो पैसा होगी उससे में चार मुर्गी खड़ीदूंगी। वह मुर्गी रोज अंडे देगी अंडे बाजार में बेच के पैसा आएगी, उन पैसों से मैं और भी मुर्गी खड़ीदूंगी।
कुछ दिन बाद मेरे पास तो बहुत सारा मुर्गी होगी। मैं तो और दूध बेचने नहीं जाऊंगी मैं मुर्गी और अंडे की business करूंगी। दूध की बलटी सर पर चढ़ा चढ़ा के मेरा बाल खराब हो गया है।
सोचते सोचते दूधवाली ने अपना सर थोड़ा नीचे किया तभी दूध की बलटी सर से नीचे गिरा। सारा दूध रास्ते में बह गया। उसकी सब सपना टूट गई थी वह रास्ते में बैठ कर रोने लगी।
शिक्षा: जब तक कुछ हाथ में नहीं हो तब तक उसकी बारे में अंदाजा लगाना नहीं।
लकड़ियों का गुच्छा
एक गांव में विजय नाम की एक आदमी उसकी तीनो बेटे के साथ रहता था। लेकिन उसके तीन बेटे हमेशा आपस में लड़ता रहता था। इसीलिए, कुछ दिन से विजय बहुत चिंतित था।
कुछ साल बीत गया, विजय अब बुड्ढा हो गया था। कुछ दिन से उसकी तबीयत बहुत खराब हो गई। वह सारा दिन बिस्तर पर सोया रहता था। एक दिन, विजय उसकी तीनों बेटे को एक साथ बुलाया।
और कहां, “मैं मरने से पहले तुम तीनों को कुछ शिक्षा देकर जाना चाहती हूं।” तीनों बेटे पिता की तरफ देख रहा था। विजय अपनी तकिया के नीचे से कुछ लकड़ियों का गुच्छा निकल कर तीनों बेटे कि हाथ में एक एक गुच्छा देकर कहां, “इसे तोड़कर दिखाओ।”
तीनों बेटे अपनी पूरी ताकत लगा दी थी। लेकिन, किसी ने भी गुच्छा को तोड़ नहीं पाया। तब विजय गुच्छा वापस लेकर तीनों के हाथ में एक एक छड़ी दी और कहां, “इसे तोड़कर दिखाओ।”
तीनों बेटे आसानी से छड़ी को तोड़ दिया। तब विजय तीनों बेटे को कहा, “अगर तुम तीनों लकड़ियों का गुच्छा की तरह एक साथ रहोगे, तो तुम्हें कोई नुकसान नहीं कर पाएगा।
और अगर तुम तीनों आपस में लड़ते रहोगी। तो तुम्हें कोई भी छड़ी की तरह आसानी से तोड़ देगा। तीनों बेटे पिता की बात समझा और पिता से वादा किया वह हमेशा एक साथ रहेगा। आपस में कभी नहीं लड़ेगा।
शिक्षा: एकता में ही ताकत है।
हाथी और उसका साथी
जंगल में एक हाथी रहते थे। हाथी का एक भी दोस्त नहीं था। एक दिन, हाथी दोस्त की खोज में दूसरी जंगल पर गया। उसने देखा एक बंदर पेड़ मैं बैठा है।
हाथी, बंदर को देखकर उसे दोस्त बनाने का सोचा। हाथी ने बंदर को कहां, “बंदर भाई मेरा कोई भी दोस्त नहीं है। क्या तुम मेरी दोस्त बनोगी?”
बंदर ने कहा, “मैं तुम्हारी दोस्त कैसे बन सकती हूं। तुम मेरे से कितना बड़ा हो और मैं कितना छोटा हूं। मेरी तरह तुम पेड़ मैं भी नहीं चल सकते हो, नहीं नहीं मैं तुम्हारी दोस्त नहीं बन सकती।”
फिर हाथी एक खरगोश की पास जाकर उससे कहां, “तुम मेरी दोस्त बनोगी?” खरगोश ने कहा, “माफ करना हाथी भाई, मैं तुम्हारी दोस्त नहीं बन सकती। मैं तुमसे बहुत छोटा हूं।”
फिर हाथी एक मेंढक के पास जाकर मेंढक को कहा, “तुम मेरी दोस्त बनोगी मेंढक भाई?” मेंढक ने हाथी को कहा, “मैं तो पानी में रहती हूं। मैं एक हाथी के साथ दोस्ती नहीं कर सकती।”
हाथी दुखी होकर एक जगह पर बैठी थी। क्योंकि, इस जंगल में भी हाथी से कोई भी जानवर दोस्ती नहीं की। अचानक हाथी ने देखा, जंगल के सभी जानवर इधर उधर भाग रही थी।
सभी जानवर परेशान थे। हाथी ने एक लोमड़ी से पूछा, “क्या हुआ है लोमड़ी भाई?” लोमड़ी ने कहा, “शेर हम सबको मारकर खाना चाहती है। इसीलिए सभी जानवर शेर से बचने के लिए इधर उधर भाग रहे हैं।”
हाथी ने जानवरों की जान बचाने के लिए शेर के पास जाकर कहां, “तुम इस जानवरों को नहीं खा सकते हो। शेर ने कहा, “तुम्हें कहने के लिए कौन बोला, तुम अपने काम से काम रखो।”
हाथी के पास कोई रास्ता नहीं था। वह शेर को एक जोर से लात मारी। शेर डर गया, वह डर के मारे सभी जानवरों को छोड़कर वहां से भाग गया।
फिर जंगल के सभी जानवर हाथी के पास आकर कहां, “हाथी भाई तुम हमारी दोस्त बनने के लिए बिल्कुल काबिल हो।” फिर, सभी जानवर हाथी से दोस्ती किया और खुशी से जंगल में रहने लगा।
शिक्षा: दोस्त सभी आकृति और आकार में आती है।
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