हेलो, आज की इस पोस्ट में हम आपके साथ शेख चिल्ली की कहानियॉं शेयर करने जा रहे है। यह कहानियाँ बहुत दिलचस्प है। आप इन कहानियाँ को पूरा पढ़े। आपको यह कहानियाँ बहुत पसंद आएगी।
Shekh Chilli Stories in Hindi List
सबसे बड़ा झूठ : शेख चिल्ली की कहानी
मियां शेख चिल्ली चले लकड़ीयां काटनें
मियां शेख चिल्ली चले चोरों के संग “चोरी करने”
शेखचिल्ली और सात परियों की कहानी
क्यों पड़ा “मियां शेख” का नाम “मियां शेख चिल्ली”
मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव
क़ुतुब मीनार कैसे बना? : शेख चिल्ली की कहानी
शेखचिल्ली की कहानी : उड़ा हुआ पैजामा
शेख चिल्ली और उसके दोस्तों की कहानी
लंबी दाढ़ी वाले बेवकूफ होते हैं : शेख चिल्ली की कहानी
सबसे बड़ा झूठ : शेख चिल्ली की कहानी
उन दिनों शेख चिल्ली बादशाह के दरबार में मुलाज़िम था. बादशाह तो उसे बहुत पसंद करते थे, लेकिन शहज़ादा उससे बहुत चिढ़ता था.
एक दिन सभी दरबार में मौज़ूद थे. शाहजादे ने अचानक एलान किया कि जो सबसे बड़ा झूठ बोलेगा, उसे ईमान में पाँच सौ अशर्फियाँ दी जायेंगी. सभी दरबारी ये एलान सुनकर बहुत ख़ुश हुए और अपनी-अपनी किस्मत आज़माने लगे.
एक दरबारी बोला, “मेरे गाँव में बहुत बड़ी चींटी रहती है, इतनी बड़ी कि एक हाथी को खा जाये.”
दूसरा दरबारी बोला, “एक बार मेरे दादाजी तरबूज़ खा रहे थे. खाते-खाते वो उसके बीज भी खा गए, जिससे उनके पेट में तरबूज़ की बेल उग आई.”
हर दरबारी इसी तरह की झूठी कहानियाँ सुनाकर शाहज़ादे को ख़ुश करने की कोशिश करने लगे. लेकिन, शहज़ादा बोला, “अपने अब तक जो भी कहा है, वो सब मुमकिन है. इसलिए उसे झूठ नहीं माना जा सकता.”
आखिर में शेख चिल्ली की बारी आई और वह अपने स्थान पर खड़ा हो गया.
शाहज़ादे ने कहा, “बताओ चिल्ली, क्या आया है तुम्हारे खुराफ़ाती दिमाग में?”
शेख चिल्ली बोला, “आप इस दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ़ है. बादशाह को आपको कभी भी राजगद्दी पर नहीं बिठाना चाहिए.”
ये सुनकर शाहज़ादे का खून खौल उठा. वह उठकर खड़ा हो गया और चिल्लाया, “सैनिकों, चिल्ली को पकड़कर अभी इसी वक़्त कैदखाने में डाल दो.”
सैनिक दौड़ते हुए शेख चिल्ली के पास आये, तब शेख चिल्ली बोला, “शाहज़ादे! मैंने जो कहा था, वो झूठ था. दुनिया का सबसे बड़ा झूठ. आप उसे सच मानते हैं, तो मुझे कैदखाने में डलवा दीजिये. यदि झूठ मानते हैं कि तो फ़िर निकालिए मेरा ईनाम.”
शहज़ादा क्या करता? उसे मानना ही पड़ा कि शेख चिल्ली के द्वारा जो कहा गया है, वो दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है. उस दिन शेख चिल्ली ख़ुशी-ख़ुशी ईनाम लेकर अपने घर गया.
तेंदुए का शिकार
शेख चिल्ली का भाग्य जागा! झज्जर के नवाब ने शेख चिल्ली को नौकरी पर रख लिया था।
शेख चिल्ली अब समाज का एक गणमान्य व्यक्ति था।
एक दिन नवाब साहब शिकार के लिए जा रहे थे।
शेख चिल्ली ने भी साथ आने की विनती की।
''अरे मियां तुम घने जंगलों में क्या करोगे ?'' नवाब ने पूछा। ''जंगल कोई दिन में सपने देखने की जगह थोड़े ही है!
क्या तुमने कभी किसी चूहे का शिकार किया है जो तुम अब तेंदुए का शिकार करोगे ?''
''सरकार आप मुझे बस एक मौका दीजिए अपनी कुशलता दिखाने का" शेख चिल्ली ने बड़े अदब के साथ फर्माया।
तो अब जनाब शेख चिल्ली भी हाथ में बंदूक थामे शिकार पार्टी के साथ हो लिए।
उसने अपने आपको एक मचान के ऊपर पाया।
थोड़ी ही दूर पर एक बड़ा पेड़ था जिससे तेंदुए का भोजन - एक बकरी बंधी थी। चांदनी रात थी।
इस माहौल में जब भी तेंदुआ बकरी के ऊपर कूदेगा तो वो साफ दिखाई देगा। दूसरी मचानों पर नवाब साहब और उनके अनुभवी शिकारी चुपचाप तेंदुए के आने का इंतजार कर रहे थे।
इस तरह जब कई घंटे बीत गए तो शेख चिल्ली कुछ बेचैन होने लगा।
''वो कमबख्त तेंदुआ कहां है ?'' उसने मचान पर अपने साथ बैठे दूसरे शिकारी से पूछा।
''चुप बैठो!'' शिकारी ने फुसफुसाते हुए कहा।
''इस तरह तुम पूरा बेड़ा ही गर्क कर दोगे!''
शेख चिल्ली चुप हो गया परंतु उसे यह अच्छा नहीं लगा।
यह भी भला कोई शिकार है कि हम सब लोग पेड़ों में छिपे बैठे हैं और एक गरीब से जानवर का इंतजार कर रहे हैं ?
हमें अपनी बंदूक उठाए पैदल चलना चाहिए! परंतु लोग कहते हैं कि तेंदुआ बहुत तेज दौड़ता है।
वो जंगल में उसी तरह दौड़ता है जैसे मेरी पतंग आसमान में दौड़ती है खैर छोड़ो भी।
हम उसके पीछे-पीछे दौड़ेंगे। हम आखिर तक उसका पीछा करेंगे।
धीरे-धीरे करके बाकी शिकारी पीछे रह जाएंगे। मैं सबको पीछे छोड़कर आगे जाऊंगा।
मैं तेंदुए के एकदम पीछे जाऊंगा। तेंदुए को पता होगा कि मैं उसके एकदम पीछे हूं। वो रुकेगा। वो मुड़ेगा।
उसे पता होगा कि अब उसका अंत नजदीक है। वो सीधा मेरी आखों में देखेगा। एक शिकारी की आखों में देखेगा। और फिर मैं....
धांय और तेंदुआ मिमियाती बकरी के सामने मर कर गिर गया। वो बस बकरी को दबोचने वाला ही था!
एक शिकारी बड़ी सावधानी से तेंदुए के मृत शरीर को देखने के लिए गया। तेंदुआ मर चुका था। पर इतनी फुर्ती से उसे किसने मारा था ?
शेख चिल्ली के साथी ने पीठ ठोककर शेख चिल्ली को शाबाशी दी।
''क्या गजब का निशाना है!'' उसने कहा। ''तुमने तो हम सबको मात कर दिया और .आश्चर्य में डाल दिया!''
''शाबाश मियां! शाबाश!'' नवाब साहब ने शेख चिल्ली को बधाई देते हुए कहा। इस बीच में पूरी शिकार पार्टी शेख द्वारा मारे गए तेंदुए का मुआयना करने के लिए इकट्ठी हो गई थी।
''मुझे लगा कि कोई भी शिकारी मुझे चुनौती नहीं दे पाएगा परंतु शेख चिल्ली ने हम सबको सबक सिखा दिया।
वाह! क्या उम्दा निशाना था!''
शेख चिल्ली ने बडे अदब से अपना सिर झुकाया।
वो तेंदुआ कब आया और कैसे उसकी बंदूक चली इसका शेख चिल्ली को कोई भी अंदाज नहीं था!
परंतु तेंदुआ मर चुका था। और अब शेख चिल्ली एक अव्वल दर्जे का शिकारी बन चुका था! इस बारे में अब किसी को कोई शक नहीं था!
मियां शेख चिल्ली चले लकड़ीयां काटनें
एक बार मियां शेख चिल्ली अपने मित्र के साथ जंगल में लकड़ियाँ कांटने गए। एक बड़ा सा पेड़ देख कर वह दोनों दोस्त उस पर लकड़ियाँ काटने के लिए चढ़ गए। मियां शेख चिल्ली अब लकड़ियाँ काटते-काटते लगे अपनी सोच के घोड़े दौड़ने। उन्होने सोचा कि मै इस जंगल से ढेर सारी लकड़ियाँ काटूँगा। उन लकड़ियों को बाज़ार में अच्छे दामों में बेचूंगा। इस तरह मुझे काफी धन-लाभ होगा।
इस काम से मै कुछ ही समय में अमीर बन जाऊंगा। फिर लकड़ियाँ काटने के लिए ढेर सारे नौकर रख लूँगा। काटी हुई लकड़ियों से फर्नीचर का बिज़नस शुरू करूंगा। कुछ ही दिनों में मै इतना समृद्ध व्यापारी बन जाऊंगा की नगर का राजा मुझ से राजकुमारी का विवाह करवाने के लिए खुद सामने से राज़ी हो जाएगा।
शादी के बाद हम घूमने जायेंगे और एक सुन्दर सी बागीचे में राजकुमारी अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाएंगी…. ख़यालों में खोये हुए मियां शेख चिल्ली ऐसा सोचते-सोचते पेड़ की डाल छोड़ कर सचमुच राजकुमारी का हाथ थामने के लिए अपने हाथ आगे बढाने लगते हैं…तभी अचानक उनका संतुलन बिगड़ जाता है और वो धड़ाम से नीचे ज़मीन पर गिर पड़ते है। ऊंचाई से गिरने पर मियां शेख चिल्ली के पैर की हड्डी टूट जाती है। और साथ-साथ उनके बिना सिर-पैर के खयाली सपनें भी टूट कर बिखर जाते हैं।
मियां शेख चिल्ली चले चोरों के संग “चोरी करने”
एक बार अंधेरी रात में मियां शेख चिल्ली अपने घर की ओर चले जा रहे थे। तभी अचानक उनके पास से चार चोर गुज़रे। चुप-चाप दबे पाँव आगे बढ़ रहे चोरों के पास जा कर मियां शेख चिल्ली नें उनसे पूछा कि आप सब इस वक्त कहाँ जा रहे हैं। चोरों नें सोचा कि मियां शेख चिल्ली भी उन्ही की तरह कोई चोर है और साफ-साफ बता दिया कि हम चोर हैं और चोरी करनें जा रहे हैं।
मियां शेख चिल्ली को खयाल आया कि इन लोगों के साथ चला जाता हूँ… कुछ नया सीखने को मिलेगा। यही सोच कर उन्होने चोरों को कहा कि मुझे भी अपने साथ ले चलो।
पहले तो चोरों नें मियां शेख चिल्ली को मना कर दिया , पर बार-बार मिन्नतें करने पर उन्होने उन्हें भी साथ ले लिया। चोरों ने एक रिहाईशी इलाके में बने आलिशाना मकान में चोरी करने का फैसला किया, जिसमे एक अकेली बुढ़िया रहती थी। और फिर चारों घर के अंदर घुस गए और उनके पीछे-पीछे मियां शेख चिल्ली भी हो लिए।
चोरो नें उन्हें हिदायत दी कि जैसा हम कहें वैसा ही करना और हेमशा छुपे रहना।
घर के अंदर आते ही चारों चोर पैसों गहनों और अन्य कीमती चीजों की खोज में लग गए। मियां शेख चिल्ली की यह पहली चोरी थी और वो काफी उत्साहित थे। उन्होने सोचा कि चलो मैं भी घर में कुछ कीमती सामान ढूँढता हूँ और चोरों का हाथ बटाता हूँ।
खोज करते-करते मियां शेख चिल्ली घर के रसोई-घर पर जा पहुंचे। वहाँ से खीर पकने की खुशबू आ रही थी। मियां शेख चिल्ली के मुंह में पानी आ गया, चोरी करने का खयाल अब उनके दिमाग से पूरी तरह से जा चुका था। अब उन्हे किसी भी कीमत पर वह पक रही खीर खानी थी!
मियां शेख चिल्ली दबे पाँव चूल्हे के पास पहुंचे तो उन्होने देखा कि वहीं पास ही में एक बुढ़िया कुर्सी पर बैठी थी, जो शायद खीर पकाते-पकाते सो गयी थी।
खीर के ख्यालों में खोये मियां शेख चिल्ली भूल ही गए कि वो एक चोर हैं, उन्होंने फटा-फट एक प्लेट में खीर निकाली और मजे से खाने लगे।
वो खा ही रहे थे कई तभी अचानक कुरसी पर सो रही बुढ़िया का हाथ सीधा हो कर कुरसी से बाहर की और लहरा गया।
मियां शेख चिल्ली को लगा कि बेचारी बुढ़िया भूखी होगी, इसीलिए हाथ बाधा कर खीर मांग रही है। इसी नेक सोच के साथ उन्होने पतीले से एक प्याला खीर भर कर बुढ़िया के हाथ में रख दिया। गरम खीर के प्याले की तपन से सो रही बुढ़िया तिलमिला उठी। और चोर-चोर चिल्लाने लगी। चिल्लम-चिल्ली होने पर आस-पड़ोस के लोग जमा हो गए।
मियां शेख चिल्ली और चोर बाहर नहीं भाग सकते थे सो घर में ही इधर उधर छुप गए।
जल्द ही एक चोर पकड़ा गया। लोग उसे मार-मार कर सवाल-जवाब करने लगे?
तू यहाँ क्यों आया था?
“ऊपर वाला जाने!”
तूने क्या-क्या चुराया?
“ऊपर वाला जाने!”
इस तरह लोग कुछ भी पूछते चोर यही कहता कि ऊपर वाला यानि अल्लाह जाने।
लोगों ने सोचा कि चलो जाने दो, भले चोर है लेकिन हर बात में अल्लाह को तो याद करता है!
लेकिन तभी धडाम से आवाज़ आई….मियां शेख चिल्ली जो ठीक ऊपर दूछत्ती में छुपे थे नीचे कूद पड़े और चोर को थप्पड़ जड़ते हुए बोले….
“सारा करम तुमने और तुम्हारे तीन साथियो ने किया….लेकिन हर बात में तू मेरा नाम लगा दे रहा है….” ऊपर वाला जाने–ऊपर वाला जाने”…भाइयों मैं कुछ नहीं जानता मैं तो बस ऐसे ही इनके साथ हो लिया था…”
फिर क्या था…लोगों ने बाकी तीनो चोरों को भी खोजा और उनकी धुनाई करने लगे….और मौके का फायदा उठाते हुए मियां शेख चिल्ली पतली गली से निकल लिए! 😛
ससुराल की यात्रा
आ खिर शेख चिल्ली की अम्मी ने उसको लिए एक चांद जेसे सुंदर चेहरे वाली दुल्हन ढूंढ ही निकाली।
उसका नाम 'फौजिया था। फौजिया के पिता, शेख को पिता को जानते थे और जब वो कई बरस पहले शेख से हकीमजी के घर मिले थे तो उन्हें शेख पसंद आया था।
शादी के कुछ महीनों बाद शेख चिल्ली को ससुराल जाने का निमंत्रण मिला।
वो अपने सबसे अच्छे कपडे पहनकर सुबह-सुबह ही निकल पड़ा। ससुराल में उसकी पत्नी के माता-पिता, भाई-बहनों ने उसकी बहुत आवभगत की।
ठाठ से भोजन खाने के बाद शेख को उसके साले ने पान खाने को दिया।
शेख ने पहले कभी पान नहीं खाया था। फिर भी उसने पान को अपने मुंह में डाला और उसे चबाने लगा।
पान चबाते समय उसने इत्तफाक से अपने मुंह को आइने में देखा। पान के लाल रस की एक पतली सी धार उसके मुंह से बह रही थी।
शेख उसे खून समझ बेठा। वो डर से एकदम सहम गया !
मैं मर रहा हूँ! उसने सोचा।
मेरे अंदर अचानक कोई चीज टूट गई है या फिर इन लोगों ने मुझे जहर खिला दिया है! पर चाहें जो कूछ भी हो, मैं मर रहा हूं !
उसकी आंखें आंसुओं से भर गयीं।
बिना एक भी शब्द कहे वो खडे होकर सीधे अपने कमरे में गया और वहां पलंग पर जाकर लेट गया।
यह जानने के लिए कि शेख का मिजाज अचानक क्यों बिगड़ गया है उसका साला भी उसके पीछे-पीछे चला।
शेख को पलंग पर पड़े, बिना कुछ बोले और बिलख-बिलख कर रोते हुए देखकर उसके साले को कुछ भी समझ में नहीं आया कि आखिर वो क्या करे!
उसी समय शेख के ससुर भी कमरे में पधारे।
“बेटा, मुझे बताओ कि तुम्हें क्या हुआ है ?” उन्होंने शेख से पूछा। “क्या तुम्हें कहीं दर्द हो रहा हैं ?”
“ अब्बू, मैं मर रहा हूं!” शेख ने ऐलान किया। “ मेरा खून मेरे मुंह से रिस-रिस कर बाहर निकल रहा है।” फिर उसने पान के लाल रस की ओर अपनी उंगली से इशारा किया।
“क्या बस इतनी सी बात है ?” ससुर ने अपनी हंसी को दबाते हुए पूछा।
आप क्या इससे भी कुछ ज़्यादा चाहते हैं ?” शेख ने नाराज होते हुए कहा।
शेख के अचानक बीमार हो जाने के रहस्य का आखिर पर्दाफाश हुआ !
पान के लाल रस और खून के बीच में अंतर समझने के बाद शेख की सांस- में-सांस आई।
उसके बाद वो पलंग पर से कूदकर अपने साले के साथ शहर के दर्शनीय स्थल देखने के लिए पैदल निकला।
लौटने से पहले अंधेरा हो गया था।
शेख पलंग पर लेटते हीं गहरी नींद में सों गया। रात में एक मच्छर के भिनभिनाने से उसकी आँख खुली।
शेख नें उसे मारने की बहुत कोशिश की मगर असफल रहा। अंत में उसने मच्छर को मारने के लिए अंधेरे में उसकी ओर अपनी चप्पल फेंकी ।
मच्छर का भिनभिनाना बंद करने के बाद शेख दुबारा सो गया। परंतु उसकी फेंकी हुई चप्पल सीधे शहद से भरे एक छोटे बर्तन से जाकर टकराई थी।
यह वर्तन छत की लकड़ी की बिल्ली से सीधे शेख के ऊपर लटका था।
चप्पल लगने के बाद बर्तन कुछ टेढ़ा हो गया और शेख के मुंह पर शहद टपकने लगा।
सपने में शेख को शहद की मिठास आने लगी। सुबह उठने पर उसने अपने पूरे शरीर को शहद से सना पाया !
उसे नहाने के लिए पास को नदी पर जाना पड़ा।
उसके कमरे से लगा एक भंडार कक्ष था।
शेख बिना किसी को जगाए इस कमरे में से होकर नदी तक जा सकता था।
शेख दबे पांव इस कमरे में घुसा और सीधा रूई के एक ढेर में जा गिरा। रुई की धुनाई हो चुकी थी और उसे सर्दियों क॑ लिए रजाइयों में भरा जाना था।
रूईं शेख के बालों, चेहरें और शरीर पर चिपक गई।
वो अंधेरे में पिछले दरवाजे को तलाश रहा था तभी उसको साली भंडार कक्ष में कुछ लेने क॑ लिए आई। वो एक अजीब रोएंदार आकार को देखकर डर गई और जोर से चिल्लाई, “भूत! भूत!" और फिर कमरे में से तेजी से भागी।
शेख को पिछला दरवाजा मिल गया और वो घर से नदी की ओर दौड़ा। उसने जो अनुमान लगाबा था उससे नदी कुछ दूर थी। रास्ते में भंडों की एक बाड़ थी।
शेख दो-चार मिनट सुस्ताने के लिए वहां बैठ गया।
भंडों के शरीर की गर्मी से शेख को एक झपकी आ गई लेकिन तभी उसे भेड़ों के बीच कोई चलता हुआ दिखाई दिया!
वो एक चोर था! इससे पहले कि शेख कुछ करता उस चोर ने शेख के ऊपर एक कंबल फेंका और फिर शेख को अपने कंधे पर उठाकर दौड़ने लगा।
“अरे! तुम यह क्या कर रहे हो ?" शेख ने खुद को छूड़ाते हुए गुस्से में कहा। “में कोई भेड़ थोड़े ही हूं!"
क्या बोलने बाला जानवर! चोर एकदम सहम गवा! उसने कंबल और शेख को फेंका और अपनी जान बचाने के लिए सरपट भागा !
शेख नदी में कूदा और उसने रई और शहद को रगडु-रगड़ कर साफ किया। फिर उसने चोर द्वारा छोड़ें हुए कंबल को ओढा और घर की ओर चला।
भाईजान, आप कहां गए थे ?” शेख के साले ने पूछा। “गनीमत हैं कि आप सही-सलामत हैं। आपके पास वाले कमरे में एक भूत हैं! हम भूत को भगाने के लिए अभी किसी को बुलाकर लाते हैं।"
“इसकी अब कोई जरूरत नहीं है,” शेख चिल्ली ने शांत भाव में कहा। “मैं ख़ुद ही भूत से निबटने के लिए काफी हूं।”
फिर शेख ने खुद को भंडार कक्ष में बंद कर लिया और फिर झाड़ू से रई को खूब धुनाई की।
साथ में वो जोर-जोर से झूठ-मूठ के कुछ मंत्र भी पढ़ता रहा! उसके बाद वो कमरे में से किसी महान विजेता की तरह निकल कर आया।
शेख ने अपना बाकी समय ससुराल में मजे में बिताया।
वो लगातार परिवार्जनों और पड़ोसियों कीं प्रशंसा का पात्र बना रहा।
शेखचिल्ली और सात परियों की कहानी
शेखचिल्ली एक गरीब शेख परिवार से ताल्लुक रखता था. पढ़ाई-लिखाई में कमज़ोर था. ध्यान बस खेल-कूद में रमता था. मोहल्ले के लड़कों के साथ कंचे खेलने में उसने अपना पूरा बचपन बिता दिया. जवान हुआ, तब भी कंचों से पीछा ना छूटा.
माँ उसकी इस आदत से परेशान थी. वह चाहती थी कि उसका बेटा कुछ काम-धंधा करे. एक दिन वह उसे बुलाकर फटकारने लगी, “ये क्या दिन भर मोहल्ले के आवारा लड़कों के साथ कंचे खेलता रहता है. हट्टा-कट्ठा जवान हो गया है. कुछ कमा-धमा कर ला. कब तक मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ेगा?”
शेख चिल्ली क्या करता? माँ की बात मानकर अगले दिन काम की तलाश में दूसरे गाँव की ओर निकल पड़ा. रास्ते में खाने के लिए माँ ने उसे सात रोटियाँ दीं.
आधा रास्ता तय करने के बाद शेख चिल्ली को भूख लग आई. एक कुएं के पास वह रोटी खाने बैठ गया. माँ की दी सात रोटियों को देख वह कहने लगा, “एक खाऊं..दो खाऊं…तीन खाऊं कि सातों को खा लूं.”
उस कुएं में सात परियाँ रहती थीं. यह बात सुनकर उन्हें लगा कि शेख चिल्ली उन्हें ही खाने की बात कर रहा है. वे डर गईं और कुएं से बाहर आकर शेख चिल्ली से प्रार्थना करने लगी, “हमें मत खाओ. इसके बदले हम तुम्हें एक जादुई घड़ा देती हैं. इससे तुम जो भी मांगोगे, तुम्हें वह मिलेगा.”
शेख चिल्ली ने वह जादुई घड़ा ले लिया और अपने घर वापस आ गया. माँ को घड़ा देकर उसने उसे सात परियों की बात बता दी. माँ ने घड़े का परीक्षण करते हुए उससे ढेर सारे पकवान मांगे. देखते ही देखते उनके सामने थालियों में एक से बढ़कर एक पकवान सज गए. दोनों ने उस रात छककर दावत उड़ाई.
फिर शेख चिल्ली की माँ ने जादुई घड़े से खूब दौलत मांगी. उस दौलत से वे मालामाल हो गए. शेख चिल्ली की माँ खुश तो बहुत हुई, लेकिन उसे गाँव वालों का डर था. वह जानती थी कि वे लोग उसके मूर्ख बेटे से सब उगलवा लेंगे.
इसलिए उसने एक तरकीब सोची और बाज़ार से बताशे ख़रीद लाई. फिर घर की छप्पर पर चढ़कर उन्हें बरसाने लगी. छप्पर से बताशे बरास्त देख शेख चिल्ली उन्हें लूटकर खाने लगा.
कुछ दिनों में ही शेख चिल्ली और उसकी माँ के बदले ही रहन-सहन पर गाँव वालों की नज़र पड़ गई. उन्हें शक हो गया. वे सोचने लगे कि अचानक इनके पास इतनी दौलत कहाँ से आ गई.
शेख चिल्ली की माँ से पूछने पर वह कुछ ना बोली, तब उन्होंने मूर्ख शेख चिल्ली से सब उगलवाने का इरादा किया. एक दिन शेखचिल्ली को घेर कर उन्होंने पूछा, “अरे चिल्ली मियां, आजकल रंग-ढंग बदले हुए हैं जनाब के. क्या बात है?”
शेख चिल्ली ने मासूमियत से सारी बात बता दी, “हमारे पास एक जादुई घड़ा है. उससे जो मांगों, वह मिल जाता है.”
यह सुनकर गाँव वाले उसकी माँ के पास पहुँचे और उससे घड़ा दिखाने कहने लगे.
माँ बोली, “ऐसा कोई घड़ा नहीं है. शेख चिल्ली को तुम जानते ही हो. ये तो दिन में भी सपने देखता है.”
गाँव वालों ने शेख चिल्ली को घूर कर देखा, तो शेख चिल्ली बोला, “माँ मैंने तुझे घड़ा दिया था ना…..भूल गई क्या? हमने ढेर सारे पकवान खाए थे और उस दिन घर की छप्पर से बताशे बरसे थे.”
माँ बोली, “अब बताओ….छप्पर से भी कहीं बताशे बरसते हैं.”
गाँव वालों को भी यकीन हो गया कि शेख चिल्ली ने कोई सपना देखा होगा और वे अपने-अपने घर लौट गए.
क्यों पड़ा “मियां शेख” का नाम “मियां शेख चिल्ली”
बचपन में मियां शेख चिल्ली को मौलवी साहब नें शिक्षा दी थी की लड़के और लड़की के लिए अलग अलग शब्दों का प्रावधान होता है। उदाहरण के तौर पर “सुलतान खाना खा रहा है” लेकिन “सुलताना खाना खा रही है।”
मियां शेख चिल्ली नें मौलवी साहब की यह सीख गाठ बांध ली।
फिर एक दिन मियां शेख चिल्ली जंगल से गुज़र रहे थे। तभी उन्हे किसी कुएं के अंदर से किसी के चिल्लाने की आवाज़ आई। वह फौरन वहाँ दौड़ कर जा पहुंचे। उन्होने देखा की वहाँ कुए में एक लड़की गिरि पड़ी थी और वह मदद के लिए चिल्ला रही थी।
मियां शेख चिल्ली तुरंत दौड़ कर अपने दोस्तों के पास गए और उन्हे बोलने लगे कि वहाँ कुएं के अंदर एक लड़की गिरि पड़ी है और वह मदद के लिए चिल्ली रही है।
मियां शेख चिल्ली और उनके दोस्तों नें मिल कर उस लड़की को कुएं से बाहर निकाल लिया।
फिर घर जाते वक्त मियां शेख चिल्ली के एक दोस्त नें यह सवाल किया की मियां शेख आप लड़की चिल्ली रही….चिल्ली रही… क्यों बोले जा रहे थे?
तब मियां शेख के एक पुराने दोस्त नें खुलासा किया कि मौलवी साहब नें मियां शेख को पढ़ाया था की लड़का होगा तो… खाना खा रहा है, और लड़की हुई तो खाना खा रही है इसी हिसाब से मियां शेख नें लड़की के चिल्लाने पर “चिल्ली रही” शब्द का प्रयोग किया।
मियां शेख चिल्ली के सारे दोस्त मियां शेख की इस मूर्खता पर पेट पकड़ कर हंस पड़े और तभी से मियां शेख बन गए “मियां शेख चिल्ली”।
मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव
एक दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली बाज़ार पहुँच गए। बाज़ार से उन्होने अंडे खरीदे और उन अंडों को एक टोकरी नें भर कर अपने सिर पर रख लिया, फिर वह घर की ओर जाने लगे। घर जाते-जाते उन्हे खयाल आया कि अगर इन अंडों से बच्चे निकलें तो मेरे पास ढेर सारी मुर्गियाँ होंगी। वह सब मुर्गियाँ ढेर सारे अंडे देंगी। उन अंडों को बाज़ार में बैच कर मै धनवान बन जाऊंगा। अमीर बन जाने के बाद मै एक नौकर रखूँगा जो मेरे लिए शॉपिंग कर लाएगा। उसके बाद में अपनें लिए एक महल जैसा आलीशान घर बनवाऊंगा। उस बड़े से घर में हर प्रकार की भव्य सुख-सुविधा होंगी।
भोजन करने के लिए, आराम करने के लिए और बैठने के लिए उसमें अलग-अलग कमरे होंगे। घर सजा लेने के बाद मैं एक गुणवान, रूपवान और धनवान लड़की से शादी करूंगा। अपनी पत्नी के लिए भी एक नौकर रखूँगा और उसके लिए अच्छे-अच्छे कपड़े, गहने वगैरह ख़रीदूँगा। शादी के बाद मेरे 5-6 बच्चे होंगे, बच्चों को में खूब लाड़ प्यार से बड़ा करूंगा। और फिर उनके बड़े हो जाने के बाद उनकी शादी करवा दूंगा। फिर उनके बच्चे होंगे। फिर में अपने पोतों के साथ खुशी-खुशी खेलूँगा।
मियां शेख चिल्ली अपने ख़यालों में लहराते सोचते चले जा रहे थे तभी उनके पैर पर ठोकर लगी और सिर पर रखी हुई अंडों की टोकरी धड़ाम से ज़मीन पर आ गिरी। अंडों की टोकरी ज़मीन पर गिरते ही सारे अंडे फूट कर बरबाद हो गए। अंडों के फूटने के साथ साथ मियां शेख चिल्ली के खयाली पुलाव जैसे सपनें भी टूट कर चूर-चूर हो गए। 🙂
तेल का गिलास
शेर चिलली इस घमय वहीं कर रहा था जिसमें उसे सबसे ज़्यादा मजा आता था - पतंगबाजी।
वो इस समय अपने घर को छत पर खड़ा था और आसमान में लाल और हरी पतंगों के उड़ने का मजा ले रहा था ।
शेख की कल्पना भी उडान भरने लगी। वो सोचने लगा - काश मैं इतना छोटा होता कि पतंग पर बैठ कर हवा में उड़ पाता ।
“बेटा, तुम कहां हो ?”
उसकी अम्मी ने धूप की चौंध से आंखों को बचाते हुए छत की ओर देखते हुए कहा।
*बस अभी आया अम्मी," शेख ने कहा।
काफी दुखी होते हुए उसने अपनी उडती पतंग को जमीन पर उतार और फिर दौड़ता हुआ नीचे गया।
शेंख अपनी मां की इकलौती औलाद था।
पति कौ मौत के बाद शेख ही उनका एकमात्र रिश्तेदार था।
इसलिए अम्मी शेख का बहुत प्यार करती थीं।
बेटा, झट से इसमें आठ आने का सरसों का तेल ले आओ,” उन्होंने कहा और अठन्नी के साथ-साथ शेखर को एक गिलास भी थमा दिया !
“तेल जरा सावधानी से लाना और जल्दी से वापिस आना।
रास्ते में सपने नहीं देखने लग जाना, कया तुम मेरी बात को सुन रहे हो ?”
हां, अम्मी,” शेख ने कहा । “आप बिल्कुल फिक्र न करें। जब आप फिक्र करती हैं तब आप कम सुंदर लगती हैं।"
“क्रम सुंदर,” उसकी मां ने हताश होते हुए कहा।
“मेरे पास सुंदर लगने के लिए पैसे और वक्त ही कहां हैं ?
अच्छा, अब चापलूसी बंद करो। फटाफट बाजार से तेल लेकर आओ।"
शेख दौड़ता हुआ बाजार गया। वैसे वो आराम से बाजार जाता परंतु उसकी अम्मी ने उससे झटपट जाने को कहा था इसलिए वो दौड़ रहा था।
“लालाजी, अम्मी को आठ आने का सरसों का तेल चाहिए," उसने दुकानदार लाला तेलीराम से कहा। उसके बाद उसने दुकानदार को गिलास और सिक्का थमा दिया ।
दुकानदार ने एक बड़े पींपे में से आठ आने का सरसों का तेल नापा और फिर वो उसे गिलास में उंडेलने लगा। गिलास जल्दी ही पूरा भर गया।
“भई इस गिलास में तो बस सात आने का तेल हीं आएगा,” उसने शेख से कहा।
“मैं बाकी का क्या करूँ ?
क्या तुम्हारे पास और कोई बर्त्तन है, या फिर मैं तुम्हें एक आना वापिस लौटा दूं ?"
शेख दुब्रिधा में पड़ गया। उसकी अम्मी ने उसे न तो दूसरा गिलास दिया था और न ही पैसे वापिस लाने को कहा था।
वो अब क्या करे ?
तभी उसे एक नायाब तरकीब समझ में आई ! गिलास में नीचे एक गड्डा - यानी छोटो सी कटोरी जैसी जगह थी । बाकी तेल उसमें आसानी से समा जाएगा !
उसने खुशी-खुशी तेल से भरे गिलास को उल्टा किया । साय तेल वह गया। फिर शेख ने गिलास के पेंदे में बनीं छोटो कटोरी की ओर इशारा किया । “बाकी तेल यहां डाल दो," उसने कहा ।
लाला तेलीराम को शेख को बेवकूफी पर यकीन नहीं हुआ। उन्होंने सिर हिलाते हुए शेख की आज्ञा का पालन किया। शेख ने गिलास का स्रावधानी से उठाया और फिर वो घर की ओर चला।
इस घटना पर लोगों ने टिप्पणियां की । पर शेख पर उनका कोई असर नहीं पड़ा ।
जब जो घर पहुंचा तब उसकी मां कपडे धो रही थी। “बाकी तेल कहां है ?” मां ने गिलास के पेंदे की छोटी कयेरी में रखे तेल को देखकर पूछा !
यहां ! शेख ने गिलास को सीधा करने की कोशिश की और ऐसा करने के दौरान बचा खुचा तेल भी बहा दिया ।
“बाकी तेल यहां था अम्मीजान, में सच कह रहा हूं।
मैंने लालाजी को तेल इसमें डालते हुए देखा था। वो कहां चला गया ?"
“जमीन के अंदर ! तुम्हारी बेवकूफी के साथ-साथ !” उसको मां ने गुस्से में कहा।
“क्या तुम्हारी बेवकूफी का कोई अंत भी है ?"
शेख ने खुद को बहुत अपमानित महसूस किया। “मैंने बिल्कुल वही किया जो आपने मुझसे करने को कहा था," उसने कहा। “ आपने मुझसे इस गिलास में आठ आने का तेल लाने को कहा था, और बही मैंने किया।
गिलास छोटा होने पर मुझे क्या करना है, यह आपने मुझे बताया ही नहीं था और अब आप मुझ पर नाराज हो रही हैं।
आप गुस्सा न करें अम्मी। जब आप गुस्से में होती हैं तब आप...”
“अगर तुम मेरे सामने से तुरंत दफा नहीं हुए तो मैं तुम्हारे चेहरे को खूबसूरत बनाती हूं !” अम्मी ने पास पड़ी झाड़ू उठाते हुए कहा। “मेरी सहनशक्ति की भी एक सीमा है, जबकि तुम्हारी बेबकूफी असीमित हैं !"
शेख अपनी पतंग लैकर लपक कर छत पर गया। मां दुखी होकर दुबारा कपड़े धोने में लग गयी ।
उन्हें अब तेल लाने के लिए खुद बनिये को दुकान पर जाना पड़ेगा। शेख ने बहुमूल्य समय के साथ-साथ बेशकीमती पैसों को भी गंबाया।
उसके बावजूद उनका मानना था कि उनका बेटा बहुत ही आज्ञाकारी और प्यारा था।
तभी किसी ने बाहर से दरवाजा खटखटाया। लाला तेलीराम का छोटा लड़का तेल को बोतल लिए खड़ा था। “बुआजी, यह आपके लिए हैं," उसने कहा। “मेरे पिताजी ने इसे भेजा है। जब शेख भैया ने तेल से भरे गिलास को उल्टा, तो किस्मत से तेल वापिस पींपे में जा गिरा ! भैया कहां हैं ?
उन्होंने मुझे पतंग उड़ाना सिखाने का वादा किया था।”
“वो ऊपर हैं।
बेटा, तुम छत्त पर चले जाओ," शेख की मां ने तेल लेते हुए और उस छोटे लड़के के गाल को थपथपाते हुए कहा। फिर जो मुस्कुराती हुए दुबारा अपने काम में जुट गयीं।
अल्लाह उस गरीब विधवा को भूला नहीं था !
क़ुतुब मीनार कैसे बना? : शेख चिल्ली की कहानी
एक बार शेख चिल्ली दिल्ली घूमने गया. वहाँ क़ुतुब मीनार के चर्चे सुनकर वह उसे देखने पहुँचा.
क़ुतुब मीनार के पास खड़े होकर वह उसका मुआइना कर ही रहा था कि उसके कानों में दो आदमियों की बात पड़ी. दोनों आपस में बातें कर रहे थे. एक कह रह था, “वाह, क्या शानदार मीनार है? इसकी लंबाई तो देखो. ज़रूर उस ज़माने के लोग बहुत लंबे होते होंगे, तभी तो इतनी लंबी मीनार बना ली.”
“अरे बेवकूफ़” दूसरा आदमी बोला, “थोड़ा तो दिमाग लगाया कर. क़ुतुब मीनार को पहले लिटाकर बनाया गया है. फिर इसे सीधा खड़ा कर दिया गया है.”
पहले आदमी को ये बात जमी नहीं. वह बोला, “ऐसा हो ही नहीं सकता.”
बस फिर क्या था? दोनों में बहस होने लगी. कोई दूसरे की बात मानने को राज़ी नहीं था. कुछ ही देर में उनकी बहस लड़ाई में तब्दील हो गई.
शेख चिल्ली यह सब देख-सुन रहा था. उसे उन दोनों की सोच पर बड़ा तरस आया. वह उनका बीच-बचाव करता हुआ बोला, “लड़ क्यों रहे हो भाइयों. तुम दोनों ही गलत हो. बात ये है कि क़ुतुब मीनार बनाने के लिए पहले कुवां खोदकर उसे पक्का किया गया. बाद में पलटकर खड़ा कर दिया. हो गई क़ुतुब मीनार तैयार. इतनी बात समझ नहीं आई तुम दोनों को.”
दोनों आदमी शेखचिल्ली का मुँह देखते रह गए.
शेखचिल्ली की कहानी : उड़ा हुआ पैजामा
एक सुबह शेखचिल्ली की माँ ने उसके कपड़े धोए और उन्हें घर की छत पर लगी रस्सी पर सुखा आई. कुछ ही समय बीता था कि अचानक तेज हवा चलने लगी, जो फ़िर आँधी-तूफ़ान में बदल गई. ऐसे मौसम में शेखचिल्ली की माँ छत पर कपड़े लेने नहीं जा पाई.
जब तूफ़ान थमा, तो वह छत पर गई. सारे कपड़े इधर-उधर बिखरे हुए थे. एक-एक कर उसने सारे कपड़े समेटे. लेकिन उसे शेखचिल्ली का पैजामा नहीं मिला. वह हर तरफ़ उसे खोजने लगी. पता चला कि वह पैजामा कुएं में गिरा हुआ है.
वह शेखचिल्ली के पास गई और बोली, “मैं छत से तुम्हारे सारे कपड़े ले आई. लेकिन तुम्हारा पैजामा नहीं ला पाई. वह आँधी-तूफ़ान में उड़कर कुएं में गिर गया है.”
वह कुछ उदास थी.
उसे उदास देख शेखचिल्ली चहकते हुए बोला, “तुम उदास क्यों होती हो माँ? तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए.” माँ हैरान होकर उसे देखने लगी.
वह बोला, “सकारात्मक पहलू पर ध्यान दो माँ. सोचो, अगर मैंने वो पैजामा पहना होता, तो मैं भी कुएं में गिरा हुआ होता. इसलिए ख़ुश हो जाओ कि तुम्हारा बेटा सही-सलामत है.”
शेखचिल्ली की बात सुनकर माँ मुस्कुराने लगी.
शेख चिल्ली की “चिट्ठी”
एक बार मियां शेख चिल्ली के भाई बीमार पड़ गए। इस बात की खबर पाते ही मियां शेख चिल्ली नें अपनें भाई की खैरियत पूछने के लिए चिट्ठी लिखने की सोची।
पूर्व काल में डाक व्यवस्था और फोन जैसी आधुनिक सुविधाएं थी नहीं तो खत और चिट्ठियाँ मुसाफिर (लोगों) के हाथों ही भिजवाई जाती थीं। मियां शेख चिल्ली नें अपनें गाँव में नाई से चिट्ठी पहुंचानें को कहा, पर उनके गाँव का नाई (चिट्ठियाँ पहुंचाने वाला) पहले से ही बीमार चल रहा था सो उसने मना कर दिया। गाँव में फसल पकी होने के कारण दूसरे अन्य नौकर या मुसाफिर का मिलना भी मुश्किल हो गया।
तब मियां शेख चिल्ली नें सोचा की मै खुद ही जा कर भाई जान को चिट्ठी दे आता हूँ।
अगले ही दिन सुबह-सुबह मियां शेख चिल्ली अपने भाई के घर रवाना हो गए। शाम तक वह उसके घर भी पहुँच गए।
घर का दरवाज़ा खटखटाने पर उनके बीमार भाई तुरंत बाहर आए। मियां शेख चिल्ली नें उन्हे चिट्ठी पकड़ाई और उल्टे पाँव वापसअपने गाँव की और लौटने लगे।
तभी उनके भाई उनके पीछे दौड़े और उन्हे रोक कर बोले –
तू इतनी दूर से आया है तो घर में तो आ मुझ से गले तो मिल। नाराज़ है क्या मुझ से?
यह बोल कर भाई साहब मियां शेख चिल्ली को गले लगाने आगे बढ़े।
तभी मियां शेख चिल्ली नें अपने भाई से दूर हटते हुए कहा कि-
मै आप से नाराज़ बिलकुल नहीं हूँ, पर यह तो मुझे चिट्ठी पहुंचाने वाला “नाई” मिल नहीं रहा था इसलिए आप की खैर खबर पूछने की चिट्ठी देने मुझे खुद आप के गाँव तक यहाँ आना पड़ा।
मियां शेख चिल्ली के भाई ने समझाया कि अब तुम आ ही गए हो तो दो चार दिन रुक कर जाओ। इस बात पर मियां शेख चिल्ली का पारा चढ़ गया। उन्होने मुंह टेढ़ा करते हुए कहा, “भाईजान आप तो अजीब इन्सान है। आप को यह बात समझ नहीं आती की मै यहाँ नाई का फर्ज़ अदा करने आया हूँ। मुझे आप से मिलने आना होता तो मै खुद चला आता, नाई के बदले थोड़े ही आता। 😆
शेख चिल्ली और भैंस
एक बार शेखचिल्ली के गाँव में एक सूफ़ी संत आया. गाँव के मैदान में उसका प्रवचन हुआ. गाँव के लोग मैदान में इकट्ठा थे और प्रवचन सुन रहे थे. संत कह रहा था, “यदि तुम लोग रोज़ अल्लाह की इबादत करोगे, तो अल्लाह तुम्हें ईनाम के तौर पर भैंस देगा.”
उसी समय शेखचिल्ली वहाँ से गुजर रहा था. उसने कानों में जब यह बात पड़ी, तो वह ख़ुद को रोक न सका. वह फ़ौरन संत के पास पहुँच गया. उसे भैंस तो हर हाल में चाहिए थी, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उसके साथ किसी प्रकार का छल हो. कहीं भैंस वाली बात झूठ तो नहीं, ये जानने के लिए उसने संत से पूछा, “क्या अल्लाह सच में मुझे भैंस देगा, यदि मैं रोज़ उसकी इबादत करूंगा.”
“इबादत करके देखो, ख़ुद-ब-ख़ुद पता चल जाएगा.” संत के जवाब दिया.
अगले ही दिन से शेखचिल्ली रोज़ दिन में कई बार अल्लाह की इबादत करने लगा. उसे खाने-पीने की भी सुध न रही. एक महिना गुज़र गया. इतने वक़्त में तो मुझे भैंस मिल जानी चाहिए, शेखचिल्ली ने सोचा. वह घर के दरवाज़े पर गया और इधर-उधर देखने लगा. लेकिन उसे कोई भैंस नज़र नहीं आई.
वह भागा-भागा संत के पास पहुँचा और शिकायती अंदाज़ में बोला, “मैंने एक महिने तक अल्लाह की इबादत की, लेकिन मुझे भैंस नहीं मिली.”
संत बोला, “मैंने तो वो इसलिए कहा था कि तुम दिल लगाकर अल्लाह की इबादत करना शुरू कर दो. जहाँ तक भैंस की बात है, वो बाज़ार जाकर ख़रीद लो, वो तुम्हें मिल जाएगी.”
शेखचिल्ली ख़ुद को छला महसूस करने लगा. उसे लगा कि संत ने उसे मूर्ख बनाया है. लेकिन वह ख़ुद को उनके सामने मूर्ख नहीं दिखाना चाहता था. इसलिए बोला, “तुम्हें लग रहा होगा कि तुमने मुझे बेवकूफ़ बनाया है. लेकिन सुन लो कि इबादत तो मैंने भी नहीं की थी, मैंने भी बस अपने होंठ हिलाए थे. मैंने तुम्हें बेवकूफ़ बनाया है, समझे.” और हँसता हुआ वहाँ से चला गया. संत हक्का-बक्का सा उसे देखता रह गया.
शेखचिल्ली की चिठ्ठी का किस्सा
शेखचिल्ली का भाई दूसरे गाँव में रहता था. दोनों चिट्ठियों द्वारा एक-दूसरे की खैर-ख़बर लिया करते थे और जब भी मौका मिलता, एक-दूसरे के गाँव जाकर मुलाक़ात कर लिया करते थे.
एक दिन भाई के बीमार हो जाने की खबर शेखचिल्ली को मिली. उसने सोचा कि चिट्ठी भेजकर उसकी खैरियत पूछ लेता हूँ और चिट्ठी लिखने बैठ गया.
चिट्ठी लिख लेने के बाद उसे भेजने की बारी आई. उन दिनों आजकल की तरह डाक सुविधाएँ नहीं थी. लोग आने-जाने वाले मुसाफ़िरों के हाथों चिट्ठियाँ भिजवाया करते थे. शेख चिल्ली के गाँव के लोग वहाँ के नाई के हाथों ही चिट्ठियाँ भिजवाते थे और बदले में उसे कुछ पैसे दे दिया करते थे.
चिल्ली चिट्ठी लेकर नाई के पास पहुँचा, लेकिन नाई भी उस वक़्त बीमार चल रहा था. उसने चिट्ठी पहुँचाने से मना कर दिया. शेख चिल्ली ने बहुत ढूंढा, लेकिन उसे गाँव में कोई दूसरा व्यक्ति नहीं मिला, जो चिट्ठी पहुँचाने तैयार होता.
अब चिल्ली क्या करे? उसने सोचा कि अब तो कोई चारा नहीं. मुझे ही भाईजान के पास जाकर चिट्ठी पहुँचानी पड़ेगी.
अगले दिन सुबह-सवेरे ही वह अपने गाँव से निकल पड़ा. दिन भर का सफ़र पैदल करने के बाद वह शाम को अपने भाई के गाँव पहुँचा. वहाँ अपने भाई के घर जाकर उसने दरवाज़े पर दस्तक दी.
भाई ने दरवाज़ा खोला. सामने देखा, शेखचिल्ली खड़ा हुआ है. वह कुछ कहता, उसके पहले ही शेखचिल्ली ने उसके हाथ में चिट्ठी थमाई और वापस लौटने लगा.
शेख चिल्ली की ये हरक़त भाई को समझ नहीं आई. वह उसे रोककर बोला, “अरे भाई, क्या बात है? इतनी दूर से मेरे घर आया है और मुझे देखकर उल्टे पांव वापस जा रहा है? क्या हो गया? नाराज़ है क्या?”
“नहीं भाईजान!” शेखचिल्ली बोला, “मैं आपसे क्यों नाराज़ होऊंगा? आप बीमार है ना, बस ये चिट्ठी मैंने आपकी खैर-ख़बर पूछने के लिए लिखी है. लेकिन मेरे गाँव का नाई आपको चिट्ठी पहुँचाने आ नहीं पाया. इसलिए उसकी जगह मुझे ख़ुद ही ये चिट्ठी देने यहाँ आना पड़ा. आप इसे पढ़ लेना और इसका जवाब ज़रूर देना.”
इस बात पर हैरान भाई बोला, “वो ठीक है. लेकिन जब तुम मेरे घर आ ही गए हो, तो अंदर आओ. कुछ दिन यहीं मेरे पास रुको. फिर चले जाना.”
इतना सुनना था कि शेख चिल्ली बिगड़ गया. वह बोला, “भाईजान आप समझते नहीं हो. अभी मैं नाई की जगह आपको ये चिट्ठी देने आया हूँ. मैं उसका फ़र्ज़ अदा कर रहा हूँ. मुझे आपसे मिलना होता, तो मैं ना चला आता. नाई की जगह क्यों आता?”
हक्का-बक्का भाई कुछ कह नहीं पाया और शेख चिल्ली वापस चला गया.
शेख चिल्ली की खीर कहानी
शेख चिल्ली निरा मूर्ख था. बातें भी ऐसी करता था कि अच्छे-भले इंसान का सिर चकरा जाए. सबसे ज्यादा वह अपनी माँ को परेशान किया करता था उट-पटांग सवाल पूछ-पूछकर.
एक बार उसने अपनी माँ से पूछा, “माँ मरते कैसे हैं?”
अब माँ क्या जवाब दे? शेख चिल्ली को टरकाने के लिए उसने कह दिया, “आँखें बंद हो जाती हैं और इंसान मर जाता है.”
“ये तो बहुत आसान है.” कहता हुआ चिल्ली घर से बाहर चला गया.
घर से निकलने के बाद शेख चिल्ली घूमता-घामता जंगल चला आया. वहाँ उसने एक पेड़ के नीचे बड़ा सा गड्ढा देखा, तो सोचा क्यों ना मैं आज मर कर देखूं. वह गड्ढे में घुसकर आँखें बंदकर लेट गया.
रात होने पर दो चोर वहाँ आये और उसी पेड़ के नीचे बैठकर बातें करने लगे, जिसके पास गड्ढे में शेख चिल्ली लेटा था.
एक चोर बोला, “चोरी करते समय एक साथी की कमी खलती है. हम तीन होते, तो चोरी करने में सहूलियत रहती. एक घर के सामने पहरा देता, दूसरा घर के पीछे और तीसरा आराम से घर के अंदर घुसकर चोरी करता.”
शेख चिल्ली उनकी बातें सुन रहा था. वह बोला, “दोस्तों! मैं तुम्हारी मदद करना तो चाहता हूँ, लेकिन क्या करूं, मैं तो मरा हुआ हूँ.”
उसकी आवाज़ सुनकर चोरों ने गड्ढे के अंदर झाँककर देखा, तो शेख चिल्ली को आँखें बंदकर वहाँ लेटा हुआ पाया.
उन्होंने पूछा, “तुम कब मरे दोस्त?”
“आज दोपहर.” शेख चिल्ली बोला, “अब तो रात होने को आई है और मरे-मरे भी मुझे भूख लगने लगी है.”
चोरों को समझते देर न लगी कि ये कोई मूर्ख है. उन्होंने सोचा क्यों ना, इसकी मूर्खता का लाभ उठाकर इससे चोरी करवाई जाये.
वे बोले, “अरे भाई, तुम्हें भूख लगी है, तो चलो हमारे साथ. चोरी करने में हमारी मदद कर देना. बदले में हम तुम्हें दावत देंगे. मरने का क्या है? दावत उड़ा कर मर जाना.”
शेख चिल्ली को बात जम गई, क्योंकि भूख के मारे उसका बुरा हाल हो रहा था और ऊपर से गड्ढे में उसे ठंड भी लग रही थी.
वह दोनों चोरों के साथ हो लिया. तीनों मिलकर गाँव के एक घर में गए. वहाँ एक चोर घर के सामने पहरा देने लगा और दूसरा घर के पीछे. उन्होंने शेख चिल्ली को घर के अंदर चोरी करने भेज दिया.
रसोई के रास्ते शेख चिल्ली घर में घुसा. वहाँ उसने देखा कि दूध, शक्कर और चांवल पड़ा हुआ है. उसकी भूख बढ़ गई और वह चोरी करने की बात भूलकर खीर बनाने लगा. उसने चूल्हा जलाया और उस पर तपेली चढ़ा दी.
उसी रसोई में एक बूढ़ी औरत सो रही थी. ठंड के कारण वह एक कोने में दुबकी थी. लेकिन चूल्हा जलने से उसे थोड़ी गर्माहट महसूस हुई और वो पसर कर सोने लगी.
शेख चिल्ली की नज़र जब उस पर पड़ी, तो देखा कि उसका हाथ पसरा हुआ है. उसे लगा कि वह औरत खीर मांग रही है. वह बुदबुदाया, “खीर बनी नहीं और मांगने वाले हाज़िर हो गए.”
उसने चूल्हे की आंच तेज कर दी, ताकि खीर जल्दी बन सके. आंच तेज होने से गर्माहट और बढ़ गई. बूढ़ी औरत ने अपने हाथ-पैर और ज्यादा पसार लिए.
ये देख शेख चिल्ली झुंझलाया, “अरे इतनी क्या हड़बड़ी है? खीर बनने तो दो, तुम्हें भी दूंगा. पूरा मैं थोड़े खा जाऊंगा.”
लेकिन गर्माहट बढ़ने के साथ-साथ बूढ़ी औरत का पसरना जारी रहा. शेख चिल्ली को लगने लगा कि वह औरत खीर खाने के लिए बेसब्र हुए जा रही है. इसलिए इतना हाथ पसार रही है. झल्ला कर उसने चम्मच से खीर निकाकर उस औरत के हाथ पर डाल दिया.
गर्म खीर हाथ में पड़ते ही बूढ़ी औरत चीखकर उठ बैठी. उसकी चीख सुनकर घर के लोग भी उठ गए और रसोई की तरफ़ भागे. वहाँ शेख चिल्ली को देख उन्होंने उसे कोतवाल के हवाले करने के लिए पकड़ लिया.
तब शेख चिल्ली बोला, “मुझे क्यों पकड़ रहे हो? जो चोर हैं, वो दोनों तो घर के बाहर है. जाओ जाकर उन्हें पकड़ो.”
इस तरह उसने उन चोरों को भी पकड़वा दिया.
शेख चिल्ली और उसके दोस्तों की कहानी
एक बार शेख चिल्ली के पड़ोस के गाँव में मेला लगा. शेख चिल्ली और उसके तीन मूर्ख दोस्त गाँव में मटर-गश्ती करते-करते ऊब गए थे. उन्होंने सोचा क्यों ना, मेला देख लिया जाए.
योजना बनते ही वे चारों पड़ोसी गाँव के लिए निकल गए. रास्ते में एक नदी पड़ी, जिसे उन्हें तैरकर पार करना था. चारों इस बात को लेकर भयभीत थे कि कहीं कोई नदी में डूब ना जाये. लेकिन हिम्मत करके वे सब नदी में उतरे और नदी पार ली.
नदी पार करने के बाद शेख चिल्ली बोला, “दोस्तों, हम चारों सही-सलामत नदी पार कर पाए हैं या नहीं, यह जानने के लिए मैं सबसे सिरों को गिनता हूँ.”
शेख चिल्ली ने तीनों दोस्तों के सिर गिने, “एक..दो…तीन.” लेकिन अपना सिर गिनना भूल गया. कायदे से चार सिर होने चाहिए थे, लेकिन तीन सिर गिनकर शेख चिल्ली रोते हुए बोला, “ये तो तीन ही सिर हुए. हममें से कोई नदी में डूब गया है.”
“ऐसा कैसे हो सकता है? मैं गिनता हूँ.” एक दोस्त ने सिर गिनना शुरू किया, “एक..दो..तीन” वह भी अपना सिर गिनना भूल गया और रोने लगा, “कोई डूब गया है…कोई डूब गया है.”
अब दूसरे दोस्त ने सिरों की गिनती की, “एक..दो..तीन” वह भी अपना सिर गिनना भूलकर रोने लगा. वैसा ही तीसरे दोस्त ने किया. अब शेख चिल्ली और उसके सारे दोस्तों ने रोते हुए तय किया कि गाँव वापस चलते हैं. हम चारों में से कोई एक नदी में डूब गया है. घर चलकर यह बात बतानी होगी.”
चारों रोते हुए घर पहुँचे. शेख चिल्ली की माँ ने उन्हें जब रोते हुए देखा, तो पूछा, “क्या हो गया? क्यों रो रहे हो तुम सब?”
शेख चिल्ली ने रोते-रोते ही सारी बात बताई. तब उसकी माँ शेख चिल्ली के सिर पर चपत लगाकर बोली, “एक”. फिर एक-एक कर तीनों दोस्तों के सिर पर चपत लगाकर बोली, “दो..तीन…चार.”
चार सिर होने पर शेख चिल्ली और उसके मूर्ख दोस्तों ने रोना बंद किया.
लंबी दाढ़ी वाले बेवकूफ होते हैं : शेख चिल्ली की कहानी
शेख चिल्ली को अपनी एक फ़ुट लंबी दाढ़ी पर बड़ा गुमान था. वह उसका ख़ास ख्याल रखा करता था. उसे लगता था कि लंबी दाढ़ी अक्लमंदी की निशानी है.
लेकिन, एक दिन एक किताब में उसने पढ़ लिया कि लंबी दाढ़ी वाले बेवकूफ़ होते हैं. इस वाक्य का उस पर इतना गहरा असर हुआ कि उसने अपनी दाढ़ी से निज़ात पाने का इरादा कर लिया, ताकि लोग उसे बेवकूफ़ न समझें.
किताब एक ओर रख वह कैंची ढूंढने में लग गया. घर की हम लाज़िमी जगह में उसने कैंची ढूंढी, लेकिन हाय रे ख़राब किस्मत कि उसे कैंची मिली ही नहीं. अब वो क्या करे? उसे तो किसी भी सूरत में दाढ़ी से निज़ात पाना था.
वह अपना दिमाग दौड़ाने लगा. तभी उसकी नज़र घर के एक कोने में रखे दीपक पर पड़ी. दीपक को देखते ही उसके दिमाग में कौंधा कि क्यों न दीपक की लौ से आधी दाढ़ी जला दूं. बची हुई बाद में मुंडवा लूंगा.
यह ख्याल आते ही उसने दीपक जलाया और एक हाथ से अपनी दाढ़ी पकड़कर उसे दीपक की लौ के पास ले गया. दाढ़ी ने तुरंत आग पकड़ ली. आग की तपिश जब उसके चेहरे को झुलसाने लगी, तो वह छटपटाने लगा.
आनन-फ़ानन में दीपक को फेंककर वह गुसलखाने की ओर भागा और पानी से भरी बाल्टी में अपना सिर डुबो दिया. आग बुझी, तब कहीं उसकी जान में जान आई.
गुसलखाने से बाहर आकर वह सोचने लगा, “किताब में बिल्कुल ठीक लिखा है कि लंबी दाढ़ी वाले बेवकूफ होते हैं.”
काला धागा
शेख चिल्ली की एक नौकरी अभी छूटी थी और वो दूसरी की तलाश कर रहा था।
उन्हीं दिनों उसने कुछ पैसे कमाने को लिए जंगल जाकर लकड़ी काटकर लाने की बात सोची।
वो एक बहुत सुहाना दिन था और शेख चिल्ली अपनी कुल्हाड़ी लेकर जंगल की ओर चला।
जंगल में वो एक पेड़ पर चढ़कर एक बहुत मजबूत डाल को काटने लगा।
उस डाल पर बहुत सारी चींटियां उसके पास से होकर जा रहीं थीं।
शेख ने उनका बहुत बारीकी से अध्ययन किया।
चींटियां कितनी व्यस्त थीं! परंतु वे जा कहां रहीं थीं ?
वो चींटियों का तने पर चढ़ना देखता रहा और साथ में पेड़ की डाल भी काटता रहा।
वो डाल काठते समय बीच में आई चींटियां को हटाता रहा।
सारी चींटियां अपने सुल्तान से मिलने के लिए जा रही होंगी, शेर ने सोचा।
वो उसे मेरे बारे में बताएंगी।
फिर सुलतान खुद मुझसे मिलने के लिए आएगा।
उसके सिर पर एक छोटी सुनहरी पगड़ी होगी।
उसे देखकर ही मैं उसे पहचान जाऊंगा! वो इतनी सारी चींटियां की जान बचाने के लिए मेरा शुक्रिया अदा करेगा।
फिर वो मेरी कुछ मदद करना चाहेगा। वो मुझे फलां
“सावधान! तुम गिरने वाले हो।” नीचे से गुजरता एक राहगीर चिल्लाया।
कर्र... की एक जोरदार आवाज हुई और जिस डाल को शेख काट रहा था वो टूट कर नीचे गिरी और उसके साथ-साथ शेख भी गिरा!
“तुम्हें चोट तो नहीं आई?” राहगीर ने शेख को उठाते हुए पूछा।
“नहीं,” शेख ने कहा। शेख भाग्यशाली निकला क्योंकि वो पत्तियों के एक ढेर के ऊपर जाकर गिरा।
“अच्छा यह बताइए कि आपको यह कैसे पता चला कि मैं गिरने वाला हूं ? क्या आप कोई ज्योतिषी हैं ?"
राहगीर एक दर्जी थां, ज्योतिषी नहीं।
परंतु वो पैसे बनाने का यह मौका गंवाना नहीं चाहता था।
इसलिए उसने कहा कि वो एक ज्योतिषी हैं।
“तुम अगर मुझे एक रुपया दोगे,” उसने कहा, “तो में तुम्हारा पूरा भविष्य बता दुंगा।"
“परंतु मेरे पास तो सिर्फ एक आना है," शेख ने अपनी जेब में से सिक्के को टटोलते और उसे देते हुए कहा।
“कम-से-कम मुझे इतना ही बता दो कि में कब तक जिंदा रहूंगा।"
दर्जी ने शेख की हथेली को बहुत करीबी से पढ़ने का नाटक किया।
“मौत तुम्हारा पीछा कर रही है!" उसने बड़ी गंभीरता से कहा !
“हाय अल्लाह!” शेख ने आह भरी।
“परंतु यह तुम्हारी रक्षा करेगा," दर्जी ने अपनी जेब से एक काला धागा निकालते हुए कूछ मंत्र पढ़ा और फिर धागे को शेख के गले में बांध दिया।
“जब तक धागा टूटेगा नहीं तब तक तुम जीवित रहोगे।”
शेख ने दर्जी का शुक्रिया अदा किया, फिर कटी टहनियों को इकट्ठा किया और फिर गंभीरता से सोचते हुए घर की ओर रवाना हुआ।
“क्या बात है ?” उसकी बीबी फौजिया ने यूछा।
वो घर की कमाई बढ़ाने के लिए कपड़े पर कुछ कढ़ाई कर रही थीं।
कढ़ाई को रखकर वो शेख के पीने के लिए ठंडा पानी लाई अपने गले में बंधे काले धागे को सहलाते हुए सहमी हुई हालत में शेख ने फौजिया को अपनी पूरी आपबीती सुनाई।
फौजिया ने सब सुनने के बाद तुरंत काले धागे को खींचकर तोड़ दिया। “ अब तुम इस पूरी बकवास को हमेशा के लिए भूल सकते हो!” उसने कहा।
शेख तुरंत अपनी आंखे बंद करके लेट गया।
“क्या हुआ ?” फोजिया ने पूछा।
“मैं मर गया हूं," शेख ने कहा। “तुम्हारे धागा तोड़ने से में अब मर गया हूं!"
तभी उसकी अम्मी घर में घुसीं। “हाय अल्लाह।” वो रोने लगीं, “मेरे बेटे को यह क्या हो गया ?"
“अम्मी, आपका लाडला समझ रहा हैं कि वो मर चुका है !"
फौजियों ने कहा और उसके बाद उसने अम्मी को पूरी कहानी सुनाई।
अब अम्मी की बारी थी शेख चिल्ली की बेवकूफी पर हंसने की !
अम्मी और फौजिया ने शेख को बहुत समझाया कि वो मरा नहीं बल्कि अच्छी तरह जिंदा है परंतु शेख उनको एक भी बात सुनने को तैयार नहीं हुआ !
फिर शेख को उसके हाल पर छोड़कर दोनों औरतें घर को अन्य कामों में लग गरयीं। इस बीच शेख जमीन पर एकदम स्रीधा लेटा रहा।
कुछ देर बाद उसने अपनी आंखें खोलीं और चारों ओर देखा।
पर जैसे ही फौजिया ने उसकी तरफ देखा शेख ने झट से अपनी आंखें बंद कर लीं!
फौजिया एक होशियार महिला थी। “अम्मीजी," उसने जोर से कहा, “अब तो यह मातम का घर है। इस समय मिठाई खाने के बारे में भला कोई कैसे सोच सकता हैं ?
अम्मी, आप जो गर्म-गर्म गुलाब जामुन लायीं हैं, उन्हें हम फेक देते हैं।”
गुलाब जामुन ? शेख की सबसे मनपसंद मिठाई! शेख अब मौत को पूरी तरह भूल चुका था।
“नहीं! नहीं!" उसने उठते हुए कहा। कृपा कर उन्हें मत फेंको। में अब जिंदा हो गया हूं।
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